प्राय: लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि ‘हनुमानजी अमर हैं तो अब वे कहां हैं ?’ यहां इस पोस्ट में यही बताया गया है कि हनुमानजी किसके आशीर्वाद से चिरंजीवी हुए और अब वे कहां हैं ? श्रीराम के अनन्य सेवक हनुमानजी अमर चिरंजीवी और सनातन हैं । उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान माता सीता और प्रभु श्रीराम दोनों ने ही दिया है । माता सीता हनुमानजी को आशीष देते हुए कहती हैं— अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥ करहुँ कृपा प्रभु…
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आपकी परेशानी का कारण आपके पूर्वजन्म के दोष तो नहीं ! जानें ये रहस्य
1*मनुष्य की मृत्यु के समय जो कुंडली बनती है, उसे पुण्य चक्र कहते हैं. इससे मनुष्य के अगले जन्म की जानकारी होती है. मृत्यु के बाद उसका अगला जन्म कब और कहां होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. जातक-पारिजात में मृत्युपरांत गति के बारे में बताया गया है. यदि मरण काल में लग्न में गुरु हो तो जातक की गति देवलोक में, सूर्य या मंगल हो तो मृत्युलोक, चंद्रमा या शुक्र हो तो पितृलोक और बुध या शनि हो तो नरक लोक में जाता है. यदि बारहवें स्थान में…
जब भी किसी मंदिर जाएं तो जरूर करें ये एक काम
शास्त्रों में देवी-देवताओं की पूजा से संबंधित कई नियम बताए गए हैं। जिनका पालन करने पर पूर्ण पुण्य लाभ अर्जित होता है। नियमों का पालन न करने पर श्रद्धालु को भगवान की कृपा शीघ्र प्राप्त नहीं हो पाती है। किसी भी देवी-देवता की पूजा के दौरान उनकी परिक्रमा करनी चाहिए। ऐसा करने पर ही पूजन कर्म पूर्ण माना जाता है। सामान्यत: यह बात सभी जानते हैं कि भगवान की आरती, पूजा आदि कर्मों में परिक्रमा का विशेष महत्व है। जानिए हम देवी-देवताओं की परिक्रमा क्यों करते हैं… हिन्दू धर्म के…
अद्भुत है हिमालय का रहस्य, इसीलिए आज भी रहते हैं रामायण और महाभारत काल के ये पात्र
*सिद्ध तपोधन जोगिजन सुर किंनर मुनिबृंद। बसहिं तहाँ सुकृती सकल सेवहिं सिव सुखकंद॥ भावार्थ:-सिद्ध, तपस्वी, योगीगण, देवता, किन्नर और मुनियों के समूह उस पर्वत पर रहते हैं। वे सब बड़े पुण्यात्मा हैं और आनंदकन्द श्री महादेवजी की सेवा करते हैं॥ हिमालय में आज भी हजारों ऐसे स्थान हैं जिनको देवी-देवताओं और तपस्वियों के रहने का स्थान माना गया है। हिमालय में जैन, बौद्ध और हिन्दू संतों के कई प्राचीन मठ और गुफाएं हैं। मान्यता है कि गुफाओं में आज भी कई ऐसे तपस्वी हैं, जो हजारों वर्षों से तपस्या कर…
पुरुषोत्तम (अधिक मास) 18 सितम्बर से 16 अक्टूबर 2020 | जानें इस मास का महत्व
पुरुषोत्तम मास हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है, जिसे अधिकमास, मल मास या पुरूषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस माह का विशेष महत्व है। संपूर्ण भारत की हिंदू धर्मपरायण जनता इस पूरे मास में पूजा-पाठ, भगवद् भक्ति, व्रत-उपवास, जप और योग आदि धार्मिक कार्यों में संलग्न रहती है। ऐसा माना जाता है कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है। यही वजह…
जानें महामृत्युंजय मंत्र का पौराणिक महात्म्य एवं जप विधि
महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना कई तरीके से होती है। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। मंत्र में दिए अक्षरों की संख्या से इनमें विविधता आती है। मंत्र निम्न प्रकार से है 〰〰〰〰〰〰 एकाक्षरी👉 मंत्र- ‘हौं’ । त्र्यक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ जूं सः’। चतुराक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ वं जूं सः’। नवाक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ जूं सः पालय पालय’। दशाक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ जूं सः मां पालय पालय’। (स्वयं के लिए इस मंत्र का जप इसी तरह होगा…
भगवान विश्वकर्मा हैं 100 शिल्प ग्रंथों के प्रदाता |
कलाएं कितनी हो सकती हैं? सब लोकोपयोगी हों। लोक उपयोगी सृजन से बड़ा कोई सृजन नहीं। सृजन श्रम, संघर्ष, समय को बचाने वाला और परिश्रम को सार्थक कर आजीविका देने वाला हो। भारत विश्वकर्मीय ज्ञान के 100 से ज्यादा ग्रंथों से समृद्ध रहा है। विश्वकर्मा और उनके शास्त्र शिल्प और स्थापत्य के प्रवर्तक के रूप में भगवान् विश्वकर्मा का संदर्भ बहुत पुराने समय से भारतीय उपमहाद्वीप में ज्ञेय और प्रेय-ध्येय रहा है। विश्वकर्मा को ग्रंथकर्ता मानकर अनेकानेक शिल्पकारों ने समय-समय पर अनेक ग्रंथों को लिखा और स्वयं कोई श्रेय नहीं…
अमावस्या का श्राद्ध महत्व
अमावस्या का श्राद्ध महत्व ब्रह्मांड बाराह राशीओ से बंधा हुवा है । मेष राशि ब्रह्मांड का प्रवेश द्वार है । मीन राशि का द्वार देवलोक ( सूर्यलोक ) की ओर है । कन्या राशि का द्वार पितृलोक ( चंद्रलोक ) की ओर है । जब किसी की मृत्यु हिती है तब जीव कर्मानुसार इनमे से एक द्वार की ओर गति करता है । सद कर्म , सदाचार ओर पैरोकारी जीव अपने पुण्यबल से सूर्यलोक जाता है । बाकी जीव पितृयान ( चन्त्रलोक ) में गति करते है । चंद्र सूक्ष्म…
जानें सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठने से होते हैं ये लाभ |
*उठे लखनु निसि बिगत सुनि अरुनसिखा धुनि कान। गुर तें पहिलेहिं जगतपति जागे रामु सुजान॥ भावार्थ:-रात बीतने पर, मुर्गे का शब्द कानों से सुनकर ब्रह्मुहूर्त में लक्ष्मणजी उठे। जगत के स्वामी सुजान श्री रामचन्द्रजी भी गुरु से पहले ही जाग गए॥ रात्रि के अन्तिम प्रहर का जो तीसरा भाग है, अर्थात सूर्योदय से 72 मिनट पहले के काल को उसको ब्रह्ममुहूर्त कहते हैं। शास्त्रों में यही समय निद्रा त्याग के लिए उचित बताया गया है। मनुस्मृति में आता हैः… ब्राह्मे मुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी। प्रातःकाल की निद्रा पुण्यों एवं…
वेदों में प्रतिदिन पृथ्वी से क्षमा माँगने को क्यों कहा गया है |
बहुत काल पहले विद्वानों की एक सभा में शास्त्रार्थ चल रहा था। उसी समय एक प्रश्न उठा कि सृष्टि में वो कौन है जिसकी सहनशीलता अपार है? तब कई विद्वानों ने अलग-अलग तर्क रखे। एक ने कहा कि जल सबसे सहनशील है क्यूंकि उसपर चाहे कितने प्रहार करो वो अंततः शांत हो जाता है। तब दूसरे ने वायु को सहनशील बताया जो जीव मात्र को जीने की शक्ति प्रदान करता है। तीसरे की दृष्टि में अग्नि सर्वाधिक सहनशील थी क्यूंकि वो संसार की समस्त अशुद्धिओं को नष्ट कर देती है।…