आपकी कार चलने वाला ड्राइवर.. अक्सर अपने आशियाने पे जाने के लिए, पैदल चलकर सफर तय करता है। आपके बिल्डिंग का वॉचमैन.. आपका खयाल रखने और सुरक्षा के लिए, अपने परिवार का ध्यान रखना भूल जाता है। आपके घर की सर्वेंट, आपका घर चमकदार दिखे इसलिए , अपना घर छोड़कर आपका घर साफ करती है मजबूरी में कुछ रूपयों के लिए.. सपनों के पहियों पर चलकर, डिलीवरी ब्वॉय आधे घंटे में खाना पहुंचाता है। आपके मोहल्ले में सफाई रहे आप बीमार ना पड़े इसलिए लिए अपनी परवाह किए बिना सफाई…
Category: Art & Entertainment
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सौ सौ सलाम | कवि – विजय श्रीवास्तव
इस संकट की घड़ी में देश के प्रत्येक घर की खुश हाली, सबके जीवन की रक्षा केलिए कोरोना नामक अदृश्य महामारी से लड़ने वाले सैन्य बल के, पुलिस बल के सरकारी आधिकारी व कर्मचारी गण सामाजिक संस्थाओं, स्वयंसेवी संस्थाएं स्वयं सेवक तन मन. धन से प्राण.प्रण से महीनों से खुले मैदान में रातों दिन.अनवरत अदृश्य शत्रु से लड़ रहें हैं उनको सौ सौ सलाम—— सौ सौ सलाम वो निगेहबान हैं डटे मैदान में, सबकी रक्षा में तन मन समर्पित किये अदृश्य दुश्मन से वो लड़ रहे| ताकी जनता जनार्दन सुरक्षित…
राह-ए-ज़िन्दगी अब क्यों, हर तरह सताती है | कवि – विजय श्रीवास्तव
राह-ए-ज़िन्दगी अब क्यों, हर तरह सताती है | मेरी ही परछाइयां, मुझको अब चिढ़ाती हैं| कल मेरा वज़ूद कितना, शक्तिमान लगता था| आज ढलती शाम में इसपर, तरस मुझको आती है| हम सशक्त से कैसे, अब अशक्त हो बैठे| ये ढलानें ज़िन्दगी है , या कोई बीमारी है| आईनों के तेवर भी, अब बदले बदले लगते हैं| इनमें मेंरी अक्स अब तो, बेनूर नज़र आती है| कौन ख़ुद मुख्तार है यहाँ, वक्त के सभी गुलाम हैं| घटते बढ़ते चांद की तरह, सबकी ही कहानी है| कवि – विजय श्रीवास्तव
(‘अभिशप्त’ शूर) | कवयित्री – दीक्षा पाण्डेय
(‘अभिशप्त’ शूर) बिना रुके मैं बिना थके मैं मीलों तय कर लेता हूँ नही सांच से कहीं परे ये हां! तंगहाल का बेटा हूँ…। मैं गिरता हूँ फिर उठता हूँ दुष्कर पथ पर बढ़ता हूँ निर्धनता ‘आवेग’ है मेरा हां, कंकरीट पर पलता हूँ …। उद्वेलित हो जठर की अग्नि तो हर सूरत से लड़ता हूँ ना डरता हूँ ना डिगता हूँ बस, मीलों तय कर लेता हूँ…। कवयित्री – दीक्षा पाण्डेय