मुजफ्फरनगर का नाम बदलने की मांग पर सियासी घमासान
नाम बदलने के बजाय विकास कार्यों पर ध्यान देने की उठी मांग
मुजफ्फरनगर के नाम परिवर्तन को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। विधान परिषद के बजट सत्र के दौरान बीजेपी एमएलसी मोहित बेनीवाल ने जिले का नाम बदलकर ‘लक्ष्मीनगर‘ रखने की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरनगर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, जहां राजा परीक्षित ने ऋषि शुकदेव से भागवत पुराण का श्रवण किया था। ऐसे पवित्र स्थान का नाम मुगल शासक मुजफ्फर अली से जुड़ा होना अनुचित है। उन्होंने यह भी कहा कि ‘लक्ष्मीनगर‘ नाम इस क्षेत्र की आर्थिक समृद्धि और प्रगति का प्रतीक बनेगा।
विपक्ष ने बताया विकास से भटकाने की कोशिश
इस मांग के बाद सपा, कांग्रेस, आजाद समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी समेत विपक्षी दलों ने बीजेपी को घेरना शुरू कर दिया।
- समाजवादी पार्टी के सांसद हरेन्द्र मलिक ने कहा कि नाम बदलने से विकास नहीं होगा। उन्होंने कहा, “अगर मोहित बेनीवाल मुजफ्फरनगर और शामली के लिए बड़े उद्योगों, विश्वविद्यालय या मेडिकल कॉलेज की मांग करते, तो हम स्वागत करते। लेकिन केवल नाम बदलने से क्या फायदा?”
- आजाद समाज पार्टी के मेरठ मंडल प्रभारी डॉ. अमित गुर्जर ने भी इस मांग का विरोध किया। उन्होंने कहा कि सरकार को उद्योगों की स्थापना और बुनियादी ढांचे पर ध्यान देना चाहिए, न कि नाम बदलने की राजनीति करनी चाहिए।
- कांग्रेस के मेरठ जिलाध्यक्ष अवनीश काजला ने इसे सरकार की नाकामी छिपाने की रणनीति करार दिया। उन्होंने कहा, “अगर नाम बदलने से ही विकास होता, तो पूरे देश के जिलों के नाम बदल दिए जाते। ट्रिपल इंजन की सरकार को तुष्टिकरण की राजनीति छोड़कर वास्तविक विकास कार्यों पर ध्यान देना चाहिए।”
नाम बदलने की राजनीति पर जारी है बहस
मुजफ्फरनगर का नाम बदलने को लेकर यह विवाद नया नहीं है। इससे पहले भी कई बार ऐसे प्रस्ताव सामने आए हैं, लेकिन अब इस मुद्दे ने एक बार फिर राजनीतिक रंग ले लिया है।
- बीजेपी इसे सांस्कृतिक पुनर्जागरण का हिस्सा बता रही है।
- विपक्ष इसे जुमलेबाजी और असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की साजिश करार दे रहा है।
अब देखना यह होगा कि यह मांग केवल एक राजनीतिक बयान बनकर रह जाती है या वास्तव में इसे सरकार द्वारा आगे बढ़ाया जाता है।
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