जानें महादेव शिव की गोपी लीला ! जब भोलेनाथ ने धरा एक गोपिका का स्वरूप
आप सभी ने यह सुना होगा कि भगवानशिव ने एक बार गोपी का स्वरूप धारण किया था।
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार जब भगवान विष्णु ने द्वापर में कृष्णअवतार लिया तब उन्होंने एक बार शरद पूर्णिमा के दिन ब्रज गोपिकाओं के साथ महारास करने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी कामबीज नामक बंसी पर जब तान क्षेड़ा तो सारी गोपिकाएँ बंसी की धुन सुन कर भागी भागी मधुबन को आ गई।
बंसी की धुन से तीनों लोक गुंजायमान हो गया पर बंसी की धुन केवल श्रीकृष्ण प्रेमानंदियो को ही सुनाई पड़ा। श्रीकृष्ण भक्ति के रस में डूबेभोलेनाथ ने जब यह बंसी सुनी तब उनसे नही रहा गया और पार्वती सहित भागे भागे मधुबन में आ गए जहाँ श्रीकृष्ण गोपियों के साथ महारास करने वाले थे।
महारास स्थल पर जैसे ही भोलेनाथपहुचे की उन्हें द्वार पर खड़ी गोपियों ने रोक दिया और कहने लगी कि हे भोलेनाथ ये महारास है यहां श्रीकृष्ण के अलावा कोई अन्य पुरुष प्रवेश नही कर सकता।यदि महारास में प्रवेश पाना है तो जाइये किसी गोपी का वेश बनाकर आइये।
तब भोलेनाथ बड़े निराश हुए । इतने में माता पार्वती ने गोपियों से कहा कि हे देवियों मैं तो स्त्री हु मुझे तो महारास में प्रवेश मिलेगा ना। तो गोपियों ने माता पार्वती का स्वागत किया और भोलेनाथ वापस लौट गए।
भोलेनाथ ने फिर एक योजना बनाई की क्यो ना किसी गोपी का वेश धारण किया जाए। पर फिर उन्होंनेसोचा कि गोपी बन तो जाऊ पर बनु कैसे। सोचते सोचते वे यमुना जी के तट पर पहुच गए। उनकी इस उलझन को देख कर यमुना जी प्रकट हो गई और भोलेनाथ से उदासी का कारण पूछा।
भोलेनाथ ने सब कथा सुनाई। फिर यमुना जी ने कहा कि आइये भोले बाबा मैं आपको गोपी बनाती हूँ। फिर यमुना जी ने भोलेनाथ का अपने जाल से अभिषेक किया। फिर उन्हें गोपियों के वस्त्र आभूषण आदि पहनाये।
लहंगा फरिया पहन कर भोले बाबा आज पूरे गोपी लग रहे थे।फिर उन्होंने वापस महारास स्थल की तरफ प्रस्थान किया तो पुनः द्वार पर गोपिया मिल गई फिर भोलेबाबा ने कहा- मैं श्रीकृष्णके महारास में प्रवेश पाने आई हूं। गोपियों ने भोलेबाबा को गोपी समझकर महारास में प्रवेश करने दिया।
भोलेनाथ जब महारास में श्रीकृष्ण के सम्मुख आये तबश्रीकृष्ण ने उन्हें तुरंत पहचान लिया और भोले बाबा का स्वागत कर कहने लगे- आओ आओ मेरे गोपेश्वर नाथ आप के इस महारास में प्रवेश से हम सभी धन्य हो गएऔर फिर श्रीकृष्ण ने अन्य गोपियों के साथ साथ भोलेबाबा केसाथ भी महारास किया। इस प्रकार भगवान शिव ने गोपी का स्वरूप धारण किया था। आज भी वृंदावन के निकट भोले बाबा के गोपी विग्रह का गोपेश्वर महादेव के नाम से पूजन किया जाता है ।