•शरीर के भीतर जो उर्जा का केन्द्र है उसे ही कुण्डलिनी कहा जाता है यह शक्ति सुसुप्तावस्था मे होती है । शरीर को जितनी शक्ति की आवश्यकता है उतनी शक्ति उसे स्वतः मिलती रहती है
यही जीवन उर्जा का केन्द्र है। विशेष कार्य के लिए शरीर को अतिरिक्त शक्ति की आवश्यकता होने पर वही से प्राप्त होती है, सामान्य व्यक्ति इसके १५% का ही उपयोग कर पाता है बाकी सुप्त पडी रहती है। इसको विधि पुर्वक जाग्रत भी किया जा सकता है। हठ योग में इसकी विधियाँ हैं किन्तु वह सामान्य व्यक्ति के लिए उपयुक्त नही है।
इस विधि से अचानक विस्फोट के साथ इसका जागरण होता है, जिससे पूर्व तैयारी न होने के कारण मनुष्य पागल भी हो जाता है या उसकी मृत्यू भी हो सकती है।
अन्य कई सामान्य विधियाँ हैं जिसमें धीरे धीरे इसको जाग्रत किया जा सकता है।।
अतिरिक्तशक्तिके जागरण से मनुष्य को अतीन्द्रिय ज्ञान होता है
कई व्यक्ति तो इसके २% का ही उपयोग करके जी रहे है शक्ति सब मे बराबर है कुण्डलिनी शक्ति के जागरण से साधक को पहले जीवात्मा का अनुभव होता है जो समष्टिगत आत्मा है। यही ब्रह्म का स्वरूप है, कुण्डलिनी जागरण से परमात्मा की थोडी सी झलक मिलती है किन्तु उसे पाने के लिए आत्मा को भी खोना पडता है, अन्यथा यात्रा यहीं पर अवरूद्ध हो जाती है।
अतिन्द्रिय ज्ञान में शरीर मन, बुद्धि, चित, आत्मा, सिद्धियाँ, अहंकार आदि के अनेक कटु एवं लुभावने दृश्य सामने आते हैं, इनमे जहॉ मन ठहर गया वही यात्रा अवरूद्ध हो जाती है जो इन मन, अहंकार आदि को खोना नही चाहता वह आत्मा पर ही रूक जाता है उसकी आगे की यात्रा अवरूद्ध हो जाती है आत्मा को भी खोने पर उसे ,,मुक्ति,, का अनुभव होता है यही निर्वाण और मोक्ष है जो जीवात्मा की अन्तिम अवस्था है यही परम गति है।
उर्जा का यह कुण्ड अनन्त शक्ति वाला है इसमे से कितना ही निकालो कम होता ही नही है। इसका सम्बन्ध उस विराट उर्जा भण्डार से है जिससे समस्त सृष्टि का संचालन हो रहा है वही अनन्त उर्जा इस शरीर को निरन्तर प्राप्त हो रही है।।
इसे खर्च करने पर ही यह प्राप्त होती है अन्यथा नही।।