कविता, ग़ज़लें, गीत, रूबाई, बाबूजी की देन है जी !
मेरा फक्कड़पन, सच्चाई, बाबूजी की देन है जी !
मेरे शब्दों का उथलापन, बेशक ! मेरा अपना है !
लेकिन भावों की गहराई, बाबूजी की देन है जी !
दसवीं तक बस दस प्रतिशत ही विद्यालय में पढ़ पाया !
नब्बे प्रतिशत मेरी पढ़ाई, बाबूजी की देन है जी !
बुरी आदतें जितनी भी हैं, वो सब मैंने बोई हैं !
जो कुछ मुझमें है अच्छाई, बाबूजी की देन है जी !
कृपा भले ही ईश्वर की हो, ज़रिया चाहे जो भी हो !
पर जो कुछ है मेरी कमाई, बाबूजी की देन है जी !
समझौतों की लाश जलाकर, बचपन में ही फूँक चुका !
सिध्दाँतों की ये परछाई, बाबूजी की देन है जी !
है मेरा ‘अस्तित्व’ उन्हीं से, धूल हूँ उनके चरणों की !
मानवता की सीख जो पाई, बाबूजी की देन है जी !
- शेखर “अस्तित्व”
मुम्बई, 11-04-2014