कही लिपटी हुई गठरी सी.. मेरी जिंदगी मिल जाए.. | कवित्रियी ” जिग्यासा “

कही लिपटी हुई गठरी सी..
मेरी जिंदगी मिल जाए..
कही से….
तुझे अहसासो की नमी मिल जाए ..
मेरी बातो की तहजीब मिल जाए ..
मैं रुठु तो दुआ मिल जाए ..
मैं जागु की तुझे सदा मिल जाए ..
तु समझे मुझे… तु बस …
समझे मुझे…
ऐसी कोई वफा मिल जाए …
कसमे ली थी वो यादो मे…
मिल जाए….
या फिर जीने की कोई ख्वाहिश हि….
मिल जाए … तुझे…
मेरे अहसासो की …..फिर से …नमी मिल जाए…..

A poem by
– जिगना दोषी
” जिग्यासा “

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5 Thoughts to “कही लिपटी हुई गठरी सी.. मेरी जिंदगी मिल जाए.. | कवित्रियी ” जिग्यासा “”

  1. Ila soni

    Very nice and adorable ➕➕🅰🅰🅰➕➕
    🍀🍀😊😊😊🍀🍀
    📖📖🙏🙏🙏📖📖

  2. Ghanshyam

    Heart touching poem…. Thank you so much Jigna…. Keep it up,,,,, I hope we can see another ones as earlier …

  3. Shaikh razzik

    Oye hoye kya bat…dil ko chu jane wala ahehas laga jaise aur alfazo me kya zazbat he

  4. Manisha

    Nice poem by jigna Doshi

  5. Ashok

    Nice
    good poem

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