येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:
तेन त्वां अभिबद्धनामि रक्षे मा चल मा चल।।
रक्षा बंधन भाई-बहन के प्यार का त्योहार है, एक मामूली सा धागा जब भाई की कलाई पर बंधता है, तो भाई भी अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने को तैयार हो जाता है।
क्या आप जानते हैं रक्षाबंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं, भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है।
हमें पाठ्य पुस्तकों में ये गलत इतिहास पढ़ाया जाता रहा है कि रक्षाबंधन की शुरुआत रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है।
अब प्रश्न ये है कि आततायी बाबर के नाम पर जान देने और लेने वाले मुसलमान हुमायूँ द्वारा शुरू किए गए रक्षाबंधन के त्यौहार को क्यों नहीं मनाते ?
इंद्राणी एवं इंद्र
रक्षाबंधन का पौराणिक इतिहास अगर देखें तो भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवता और दैत्यों (दानवों) में 12 वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए। इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए। गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए और स्वस्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा। जिसके फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।
कृष्ण और द्रोपदी
एक उदाहरण कृष्ण और द्रोपदी का माना जाता है। कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दी, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। सालों के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
यम और यमुना
भाई और बहन के प्रतीक रक्षा बंधन से जुड़ी एक अन्य रोचक कहानी है, मृत्यु के देवता भगवान यम और यमुना नदी की। पौराणिक कथाओं के मुताबिक यमुना ने एक बार भगवान यम की कलाई पर धागा बांधा था। वह बहन के तौर पर भाई के प्रति अपने प्रेम का इजहार करना चाहती थी। भगवान यम इस बात से इतने प्रभावित हुए कि यमुना की सुरक्षा का वचन देने के साथ ही उन्होंने अमरता का वरदान भी दे दिया। साथ ही उन्होंने यह भी वचन दिया कि जो भाई अपनी बहन की मदद करेगा, उसे वह लंबी आयु का वरदान देंगे।
श्री गणेश और संतोषी मां
भगवान गणेश के बेटे शुभ और लाभ एक बहन चाहते थे। तब भगवान गणेश ने यज्ञ वेदी से संतोषी मां का आह्वान किया। रक्षा बंधन, शुभ, लाभ और संतोषी मां के दिव्य रिश्ते की याद में भी मनाया जाता है। यह रक्षा विधान श्रावण मास की पूर्णिमा को प्रातः काल संपन्न किया गया था तब ही से रक्षा बंधन अस्तित्व में आया और श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने लगा।
आप सभी को परिवार सहित रक्षाबंधन की अशेष अनन्त शुभकामनाएं……💐💐💐💐💐