हर साल पूरे विश्व में 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। भारत का राष्ट्रीय पशु है। यह देश की शक्ति, शान, सतर्कता, बुद्धि और धीरज का प्रतीक माना जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र को छोड़कर पूरे देश में पाया जाता है। शुष्क खुले जंगल, नम और सदाबहार वन से लेकर मैंग्रोव दलदलों तक इसका क्षेत्र फैला हुआ है। चिंता की बात ये है कि बाघ को वन्यजीवों की लुप्त होती प्रजाति की सूची में रखा गया है। लेकिन राहत की बात ये है कि ‘सेव द टाइगर’ जैसे राष्ट्रीय अभियानों की बदौलत देश में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है।
कैसे पड़ी इस दिन की नींव
बाघों के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए साल 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित एक शिखर सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने की घोषणा की कई थी। इस सम्मेलन में मौजूद कई देशों की सरकारों ने 2022 तक बाघों की आबादी को दोगुना करने का लक्ष्य तय किया था।
हालांकि भारत में बाघों को बचाने का प्रोजेक्ट काफी पहले 1973 में ही शुरू कर दिया गया था। इसके तहत कई टाइगर रिजर्व बनाए गए। एक रिपोर्ट के अनुसार साल 1973-74 के दौरान भारत में टाइगर रिजर्व की संख्या 9 थी लेकिन अब इसकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है।
पर्यावरण और जलवायु मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने जारी की रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस से एक दिन पहले मंगलवार को केंद्रीय पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो ने राष्ट्रीय मीडिया सेंटर में बाघों की जनगणना की रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है।
प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि 1973 में जब टाइगर रिजर्व शुरू हुआ था तब 9 टाइगर रिजर्व थे, बढ़ते-बढ़ते ये अब 50 हो गए है। दुनिया की 70% बाघ भारत में है इस पर भारत को गर्व होना चाहिए। हमारे पास 30,000 हाथी, 3000 एक सींग वाले गैंडे और 500 से अधिक शेर हैं।
राज्यों में मध्य प्रदेश टॉप पर
2010 और 2014 में कर्नाटक बाघों की संख्या के मामले में एक नंबर पर था। लेकिन, 2018 के टाइगर सेन्सस में मध्य प्रदेश पहले नंबर पर आ गया। जहा 526 बाघ है जबकि आखिरी बार 308 थी। वहीं दूसरे नंबर पर कर्नाटक है जहां बाघों की संख्या 524 है जो कि पिछली बार 406 थी। मध्य प्रदेश और कर्नाटक के बाद उत्तराखंड तीसरे नंबर पर है यहां 442 बाघ है जबकि पिछली बार इनकी संख्या 340 बताई गई थी 2010 से मध्य प्रदेश और कर्नाटक में सबसे ज्यादा बाघ रहे हैं। मध्य प्रदेश में बाघों की आबादी 70% बढ़ी जबकि कर्नाटक की 68% की बढ़ोतरी हो रही।
यूपी में बढ़ी बाघों की संख्या
हर चार साल में बाघों की गिनती ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन के तहत की जाती है। अंतिम बार यह गणना 2018 में हुई, कार्बेट ही एकमात्र टाइगर रिजर्व एरिया है जहां बाघों की संख्या 200 से अधिक है 2006 में जिम कार्बेट में बाघों की संख्या 137 थी जो बढ़कर 2010 में 174 और 2014 में 215 हो गई। कार्बेट के डायरेक्टर ने राहुल ने बताया, ‘हमें उम्मीद थी कि संख्या 250 से ऊपर होगी।’ कार्बेट के बाद बाघों की संख्या कर्नाटक के नागरहोल (127) और बांदीपुर (126) में अधिक है। चौथे नंबर पर मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ और असम का काजीरंगा नैशनल पार्क है पांचवे नंबर पर तमिलनाडु का मुदुमलई है।
भारत में कौन करता है बाघों का संरक्षण
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority)यह पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है, जो 2006 में संशोधित वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत गठित है। इसकी स्थापना पर्यावरण और वन मंत्री के अध्यक्षता में की गई है।
इस प्राधिकरण में आठ विशेषज्ञ या पेशेवर होते हैं, जिनके पास वन्यजीव संरक्षण और आदिवासियों सहित अन्य लोगों के कल्याण का अनुभव होता है। इन आठ में से तीन संसद सदस्य होते हैं, जिनमें से दो लोक सभा तथा एक राज्य सभा का सदस्य होता है।
बाघों के बारे में रोचक बातें
आपको बता दें कि बाघ अपने जन्म के एक सप्ताह तक देख नहीं पाते हैं।
बाघ का वजन कम से कम तीन सौ किलो तक हो सकता है।
आपको बता दें कि बाघ 5 मीटर की ऊंचाई तक फांद सकता है और 6 मीटर तक की चौड़ाई तक कुद सकता है।
बाघ छह किलोमीटर तक की दूरी तैरकर पार कर सकते हैं।