श्रावण सोमवार के दिन अमावस्या तिथि होने से इसे सोमवती अमावश्या कहा जाता है , आज के दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक कर के पितृ दोष का निवारण किया जाता है आधुनिक काल में पितृ दोष को ही कालशर्प दोष का नाम दे दिया गया है, आज के दिन पित्र दोष , काल सर्प दोष की शांति के लिए बहुत ही शुभ दिन है ,काल शर्प वैसे देखा जाय तो शर्प योनी के बारे में अनेक वर्णन मिलते है | हमारे धर्म शास्त्रों में गीता में स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है की पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म केवल विषय -वासना के कारण जीव की उत्त्पत्ति होती है |
जीव रुपी मनुष्य जैसा कर्म करता है उसी के अनुरूप फल मिलता है. विषय -वासना के कारन ही काम-क्रोध, मद-लोभ और अहंकार का जन्म होता है इन विकारों को भोगने के कारण ही जीव को “सर्प “योनी प्राप्त होती है | कर्मों के फलस्वरूप आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव को काल शर्प दोष कहा जाता है। कुंडली में जब सारे ग्रह राहू और केतु के बीच में आ जाते है तब कालसर्प योग बनता है ज्योतिष में इस योग को अशुभ मन गया है लेकिन कभी कभी यह योग शुभ फल भी देता है, ज्योतिष में राहू को काल तथा केतु को सर्प माना गया है राहू को सर्प का मुख तथा केतु को सर्प का पूंछ कहा गया है वैदिक ज्योतिष में राहू और केतु को छाया ग्रह संज्ञा दी गई है, राहू का जन्म भरणी नक्षत्र में तथा केतु का जन्म अश्लेषा में हुआ है जिसके देवता “काल “एवं “सूर्य “है |
राहू को शनि का रूप और केतु को मंगल ग्रह का रूप कहा गया है ,राहु मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि में नीच होता है,राहु के नक्षत्र आर्द्रा स्वाति और शतभिषा है, राहु प्रथम द्वितीय चतुर्थ पंचम सप्तम अष्टम नवम द्वादस भावों में किसी भी राशि का विशेषकर नीच का बैठा हो,तो निश्चित ही आर्थिक मानसिक भौतिक पीडायें अपनी महादशा अन्तरदशा में देता है मनुष्य को अपने पूर्व दुष्कर्मो के फलस्वरूप यह दोष लगता है जैसे शर्प को मारना या मरवाना , भ्रूण हत्या करना या करवाने वाले को , अकाल मृत्यु ( किसी बीमारी या दुर्घटना में होने करण ) उसके जन्म जन्मान्तर के पापकर्म के अनुसार ही यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी चला आता है .
सोमवती अमावस्या के दिन मौन रहने का सर्वश्रेष्ठ फल कहा गया है. देव ऋषि व्यास के अनुसार इस तिथि में मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्त्र गौ दान के समान पुन्य फल प्राप्त होता है.
शास्त्रो में जो उपाय बताए गये हैं उनके अनुसार जातक किसी भी मंत्र का जप करना चाहे, तो निम्न मंत्रों में से किसी भी मंत्र का जप-पाठ आदि कर सकता है।
१- ऊँ नम शिवाय मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए और शिवलिंग के उपर गंगा जल, कला तिल चढ़ाये ।
२ – महामृत्युंजय मत्र : ॐ हौं ॐ जूं˙ सः ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यंवकंयजामहे सुगंधि पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव वन्धनाम् मृर्त्योमुक्षीय मामृतात्॥ ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः सः ॐ जूं ॐ हौं ॐ ॥
३- राहु मंत्र : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः और केतु मंत्र : ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।
४- नव नाग स्तुति :
अनंतं वासुकिं शेषंपद्म नाभं च कम्बलं।
शंख पालं धृत राष्ट्रं तक्षकं कालियंतथा॥
एतानि नव नामानि नागानां चमहात्मनां।
सायं काले पठेन्नित्यं प्रातः कालेविशेषतः॥
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीभवेत्॥
सोमवती अमावश्या या नाग पंचमी के दिन रूद्राभिषेक कराना चाहिए. नाग के जोड़े चांदी या सोने में बनवाकर उन्हें बहते पानी में प्रवाहित कर दें। सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है . या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है . शनिवार के दिन पीपल की जड़ में गंगा जल, कला तिल चढ़ाये । पीपल और बरगद के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है
नागपंचमी के दिन व्रत रखकर नाग देव की पूजा करनी चाहिए. कालसर्प गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए.
ॐ काल शर्पेभ्यो नमः…
इस मंत्र को बोल कर कच्चे दूध को गंगाजल में मिलाकर उसमे काला तिल डाले और बरगद के पेड़ में दूध की धारा बनाकर ११ बार परिक्रमम करें , या शिवलिंग पर ॐ नमः शिवाय बोलकर चढ़ाये तो शार्प दोष से मुक्ति मिलेगी
पितृ दोष का सिद्धांत है – करे कोई, भरे कोई। पिता के पापों का परिणाम पुत्र को भोगना ही पड़ता है,यदि उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है तो वे प्रेत योनि में प्रवेश कर अपने ही कुल को कष्ट देना शुरू कर देते हैं। कभी-कभी देखने में आता है कि हमारा कोई भी दोष नहीं होता, हमने कोई पाप कर्म नहीं किया होता, फिर भी हमें कष्ट भोगना पड़ता है। यह पितृदोष के कारण होता है।
ऐसे कुछ कारण निम्न हो सकते हैं- पिता, ताया, चाचा, ससुर, माता, ताई, चाची और सास का अपमान करना, पूर्वजों का शास्त्रानुसार श्राद्ध व तर्पण न करना, पशु पक्षियों की व्यर्थ ही हत्या करना, सर्प वध करना। पितृदोष के निवारण हेतु उपाय विधिपूर्वक उपाय करने से व्यक्ति स्वयं, अपने पितरों व आने वाली पीढ़ी को इस दोष के प्रभावों से बचा सकता है।
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य से पिता , चन्द्र से माता , गुरु से पितामह , बुध-मंगल से भाई बहन आदि के बारे में जानकारी मिलती है
जैसे कुंडली में यदि कही चंद्र राहु, चंद्र केतु, चंद्र बुध, चंद्र, शनि आदि का सम्बन्ध बनता है तो मातृ पक्ष से योग बनता है या मातृ दोष कहलाते हैं।
यदि चंद्र-राहु एवं सूर्य-राहु योगों को ग्रहण योग तथा बुध-राहु को जड़त्व योग कहते हैं।
जन्म कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव पर सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का योग हो तो जातक को पितृ दोष होता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उसके ही अशुभ फल घटित होते हैं।
प्रथम भाव में :- इसे ज्योतिष में लग्न कहते है यह शारीर का प्रतिनिधित्व करता है ,सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि आदि अशुभ योग हो तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती हैं।
दूसरे भाव:– इस भाव से धन, परिवार आदि के बारे में पता चलता है इस भाव में यह योग बने तो परिवार में वैमनस्य व आर्थिक उलझनें हों,
चतुर्थ भाव :– इस भाव से माता , वाहन , जमीन में पितृ योग के कारण भूमि, मकान, माता-पिता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं।
पंचम भाव में उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत हैं।
सप्तम में यह योग वैवाहिक सुख में कमी करता है
नवम भाव :- अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है।
दशम भाव :– पिता के स्थान-दशम् भाव का स्वामी 6, 8, 12 वें भाव में चला जाए एवं गुरु पापी ग्रह प्रभावित या राशि में हो साथ ही लग्न व पंचम के स्वामी पाप ग्रहों से युति करे तो ऐसी कुंडली पितृशाप दोष युक्त कहलाती है। सर्विस या कार्य व्यवसाय संबंधी परेशानियाँ होती हैं।
किसी कुंडली में लग्नेश ग्रह यदि कोण (6,8 या 12) वें भाव में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव में हो तब भी पितृदोष होता है।
पितृयोग कारक ग्रह पर यदि त्रिक (6, 8,12) भावेश एवं भावों के स्वामी की दृष्टि अथवा युति का संबंध भी हो जाए, तो अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेत बाधा, ज्वर, नेत्र रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि आदि अनिष्ट फल होते हैं।
ऐसी स्थिति में पितरों का तर्पण करने से पितृ आदि दोषों की शांति होती है।
इन योगों के प्रभावस्वरूप भी भावेश की स्थिति अनुसार ही अशुभ फल प्रकट होते हैं।
‘श्रद्धया यत् क्रियते तत् श्राद्धम्’
पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा द्वारा हविष्ययुक्त (पिंड) प्रदान करना ही श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध करने से पितर संतुष्ट होते हैं और वे अपने वंशजों को दीर्घायु, प्रसिद्धि, बल-तेज एवं निरोगता के साथ-साथ सभी प्रकार के पितृ दोष से मुक्ति प्रदान करने का आशीर्वाद देते हैं।
सरल उपाय :-
(1) पीपल और बरगद के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है . या पीपल का पेड़ किसी नदी के किनारे लगायें और पूजा करें, इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है . या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है .
(2) अपने माता -पिता , भाई-बहन की हरसंभव सेवा करे।
(3) प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है.
(4) सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है.
(5) सोमवती अमावस्या के दिन पितृ दोष निवारण पूजा करने से भी पितृ दोष में लाभ मिलाता है , सोमवती अमावश्य के दिन या नाग पंचमी पर इसकी शांति करें आप को अवश्य लाभ होगा ,ॐ काल शर्पेभ्यो नमः… इस मंत्र को बोल कर कच्चे दूध को गंगाजल में मिलाकर उसमे काला तिल डाले और बरगद के पेड़ में दूध की धारा बनाकर ११ बार परिक्रमम करें , या शिवलिंग पर ॐ नमः शिवाय बोलकर चढ़ाये तो शार्प दोष से मुक्ति मिलेगी…
(6) ‘ऊँ नवकुल नागाय विद्महे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प प्रचोदयात् – ”की एक रुद्राक्ष माला जप प्रतिदिन करें।
(7))घर एवं कार्यालय, दुकान पर मोर पंख लगावें।
(8) शनि के दिन ताजी मूली का दान करें। कोयले, बहते जल में प्रवाहित करें