राजस्थान में शुरू हुआ सियासी भूचाल थमने का नाम नहीं ले रहा है और यह संकट गहराता जा रहा है. पिछले दो दिनों से जो स्थितियां बनी हुई हैं, उससे साफ है कि अब सचिन पायलट और सीएम अशोक गहलोत के बीच सुलह की गुंजाइश नहीं बची है बल्कि यह लड़ाई आरपार की बन गई है. पायलट ने बागवत का रुख अख्तियार कर रखा है तो गहलोत सख्त तेवर अपनाए हुए हैं. ऐसे में सवाल है कि सचिन पायलट के पास आगे की राजनीति की राह क्या है तो वहीं गहलोत के सामने सरकार को बचाए रखने की कड़ी चुनौती है.
पायलट के सामने राजनीतिक विकल्प?
कांग्रेस पार्टी इस राजनीतिक संग्राम को अगर बातचीत से सुलझाने में असफल रहती है तो सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ एक अलग मोर्चा बना सकते हैं. ऐसे स्थिति में उनके साथ करीब 30 विधायकों के समर्थन का दावा किया जा रहा है. हालांकि, तीसरा मोर्चा बनाने के लिए पहले उन्हें कांग्रेस पार्टी के एक तिहाई विधायकों को अपने साथ मिलना होगा. मौजूदा विधायकों की संख्या के आधार पर कम से कम 35 से 40 विधायकों का समर्थन पायलट को जुटाना होगा, जो काफी चुनौती भरा माना जा रहा है.
सचिन पायलट अगर इसमें सफल रहते हैं तो ऐसी स्थिति में बीजेपी के समर्थन से समर्थित सरकार बनाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन बीजेपी उनको मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार करेगी या नहीं, यह अहम सवाल होगा. ऐसे में सचिन पायलट के सामने काफी बड़ी राजनीतिक चुनौती खड़ी हो गई है.
पायलट थामेंगे बीजेपी का दामन?
सचिन पायलट अपने मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर चलते हुए बीजेपी का दामन थामने के विकल्प पर विचार कर सकते हैं. इसे लेकर राजनीतिक अटकलें भी जोरों पर हैं. बीजेपी में सचिन पायलट के शामिल होने के फैसले पर जितने विधायक उनके साथ आते हैं, तो उन्हें पार्टी और विधायकी से इस्तीफा देना होगा. इतना ही नहीं, पायलट के कई समर्थक विधायक मुस्लिम भी हैं जो बीजेपी में जाने के पक्ष में फिलहाल नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में यह संख्या कम हो सकती है.
इसके अलावा बड़ा सवाल यह भी है कि क्या सचिन पायलट को बीजेपी का राजस्थान पार्टी नेतृत्व स्वीकार पाएगा, क्योंकि राजस्थान बीजेपी में वसुंधरा राजे सिंधिया के होते हुए मुख्यमंत्री के पद को लेकर कोई वैकेंसी फिलहाल खाली तो नहीं दिखती है. मौजूदा राजनीतिक हालात में अगर सचिन पायलट बीजेपी में जाने की सोचेंगे तो बिना सीएम पद के वो तैयार हो जाएं इसकी संभावना कम ही लगती है.
समीकरण में बीजेपी काफी पीछे
मध्य प्रदेश में सीटों को लेकर बीजेपी कांग्रेस के बीच गैप काफी कम था, जिसे पाटना संभव था, लेकिन राजस्थान में ऐसा नहीं है. इस वक्त राजस्थान में बीजेपी के 72 विधायक हैं, आरएलपी के 3 विधायक उन्हें समर्थन दे रहे हैं. इस तरह इस खेमे में 75 विधायक हैं जबकि, दूसरी तरफ कांग्रेस के खुद के 107 विधायक हैं और निर्दलीय व अन्य छोटी पार्टियों के समर्थन से उसके पास 123 का नंबर है विधानसभा की स्ट्रेंथ 200 है यानी बहुमत के लिए 101 सीट ही काफी है.
एक-एक कर इतने विधायक जुटाना संभव नहीं है और असंतुष्ट माने जा रहे कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के पास फिलहाल इतने विधायक नजर नहीं आ रहे हैं. ऐसे में संख्या बल के लिहाज से भाजपा के लिए यहां सत्ता परिवर्तन कराना काफी मुश्किल है और कांग्रेस काफी हद तक मजबूत स्थिति में है. राजस्थान के भाजपा नेता सत्ता परिवर्तन के सवाल पर ज्यादा कुछ बोल भी नहीं रहे हैं.
गहलोत को सरकार बचाने का चैलेंज
सचिन पायलट के बगावत के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने सरकार बचाने की चुनौती है. ऐसे में कांग्रेस की ओर से 109 विधायकों के समर्थन का दावा किया जा रहा है, लेकिन यह आंकड़ा गहलोत कैसे जुटा रहे हैं. इस पर तस्वीर साफ नहीं है. हालांकि, गहलोत और उनके समर्थक निर्दलीय और सहयोगियों के साथ मिलकर बहुमत हासिल करने में कामयाब होते हैं तो सरकार बच सकती है. लेकिन ऐसी स्थिति में सरकार काफी कमजोर हो सकती है.
पायलट पर ऐक्शन होगा?
राजस्थान कांग्रेस में जारी घमासान के बीच जिस तरह से व्हिप जारी किया गया है, ऐसे में सवाल उठ रहा कि क्या सचिन पायलट विधायक दल की बैठक में शामिल होंगे. हालांकि, पायलट खेमे ने साफ सकेत दिए हैं कि व्हिप जारी होने पर भी पायलट सोमवार विधायक दल की बैठक में नहीं शामिल होंगे. ऐसे में सवाल है कि उन पर क्या कार्रवाई होगी. हालांकि, कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि विधायक दल की बैठक में कांग्रेस के जो भी विधायक शामिल नहीं होंगे तो उनकी सदस्यता खत्म हो सकती है.