भगवान शिव का प्रिय महीना है श्रावण इस महीने में जो भी भक्त सच्चे मन से शिव की पूजा-उपासना करते है उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।
शिव शब्द का अर्थ है ही कल्याण करना है ,भगवान शिव का ध्यान प्रायः ह्रदय में होता है यदि ह्रदय शुद्ध नहीं है काम , क्रोध , लोभादिक विकारों से दूषित है तो वहां भगवान कैसे आयेगे ।
अतः श्रद्धारुपी भवानी तथा विश्वास रुपी शिव के आभाव में हृदयस्थ शिव का दर्शन , संभव नहीं है ।
श्री शिव जी की प्रसन्नता के लिए तदनुसार अर्थात शिव जी के समान ही त्यागी , परोपकारी , सहिस्णुता और काम, क्रोध , लोभ आदि से शून्य होकर ह्रदय को निर्मल बनाना होगा।
गोस्वामी जी ने कहा है ” निर्मल मन जन सो मोहि पावा , मोहि कपट चाल छिद्र न भावा ।
” भावार्थ:-जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल-छिद्र नहीं सुहाते।
कैसे करे शिवजी का पूजन :-
श्रवण महीने में भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जाता है इस महीने में सभी दिन शुभ है लेकिन शिव का प्रिय दिन सोमवार है अतः सभी शिवालयों में शिव की विशेष पूजा सोमवार को की जाती है , शिवजी का अभिषेक गंगा जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, और गन्ने के रस आदि से किया जाता है। अभिषेक के बाद शिव लिंग के ऊपर बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, नीलकमल, ऑक मदार और भांग के पत्ते के आदि से पूजा की जाती है।
बेलपत्र पर सफ़ेद चन्दन से ओम नमः शिवाय या राम नाम लिख कर चढाने से महादेव अति शीघ्र प्रसन्न होते है।
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग पर सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है अतः शिव पूजा में शमी का पत्ता अवश्य चढ़ाये।
सावन के महीने में जो भी भक्तजन सच्चे मन से शिवजी के मंदिर में जाकर भगवान शिवलिंग के दर्शन करता है, वह जन्म-मरण पुनर्जन्म के बँधन से मुक्ति पा जाता है।
मंत्र जाप :-
शिव (शि-व) मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है और दूसरा उसे संतुलित करता है। इसलिए जब हम ‘शिव’ कहते हैं, तो हम ऊर्जा को एक खास तरीके से, एक खास दिशा में निर्देशित करने की बात करते हैं। ‘शिवम’ में यह ऊर्जा अनंत स्वरुप का रुप धारण करती है।
‘ऊं नम: शिवाय’ का महामंत्र भगवान शंकर की उस उर्जा को नमन है जहां शक्ति अपने सर्वोच्च रूप में आध्यात्मिक किरणों से भक्तों के मन-मस्तिष्क को संचालित करती है। जीवन के भव-ताप से दूर कर भक्ति को प्रगाढ़ करते हुए सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण से मुक्त कर मानसिक और शारीरिक रूप में विकार रहित स्वरूप प्रदान करती है। यह स्वरूप निर्विकार होता है जो परमब्रह्म से साक्षात्कार का रास्ता तय कराता है।
महाकाल की आराधना और उनके मंत्र जाप से मृत्यु शैया पर पड़े व्यक्ति में भी जान डाल देता है । खासकर तब जब व्यक्ति अकाल मृत्यु का शिकार होने वाला हो। इस हेतु एक विशेष जाप से भगवान महाकाल का लक्षार्चन अभिषेक किया जाता है-
‘ॐ ह्रीं जूं सः भूर्भुवः स्वः, ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्। उर्व्वारूकमिव बंधनान्नमृत्योर्म्मुक्षीयमामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ’
इसी तरह सर्वव्याधि निवारण हेतु इस मंत्र का जाप किया जाता है।
अंत में श्री महाकालेश्वर से परम पुनीत प्रार्थना है कि इस शिवरात्रि में इस अखिल सृष्टि पर वे प्रसन्न होकर सभी जीव का कल्याण करें – ‘कर-चरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम, विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व, जय-जय करुणाब्धे, श्री महादेव शम्भो॥’ अर्थात हाथों से, पैरों से, वाणी से, शरीर से, कर्म से, कर्णों से, नेत्रों से अथवा मन से भी हमने जो अपराध किए हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको है करुणासागर महादेव शम्भो! क्षमा कीजिए, एवं आपकी जय हो, जय हो।
पंडित कौशल पाण्डेय
शिव शक्ति मंदिर ,सी 8 यमुना विहार