चित्रकूट के खदानों में हो रहा है लड़कियों का यौन शोषण, मेहनताने के बदले कर रहे हैं ज‍िस्म का सौदा।

चित्रकूट के खदानों में हो रहा है मजदुर लड़कियों का यौन शोषण, मेहनताने के बदले कर रहे हैं ज‍िस्म का सौदा।


चित्रकूट के खदानों में हो रहा है लड़कियों का यौन शोषण, मेहनताने के बदले कर रहे हैं ज‍िस्म का सौदा।

कोरोना संकट के दौर में चित्रकूट की खदानों में नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण करने का खुलासा हुआ है। चित्रकूट के खदानों में नाबालिग लड़कियों के साथ कोरोना संकटकाल में मजदूरी के बदले यौन शोषण किया जाता है।

दिल्ली से सैकड़ों किलोमीटर दूर बुंदेलखंड का चित्रकूट किसी नरकलोक से कम नहीं हैं। जहाँ मजबूर नाबालिग लड़कियों के गरीबी का फायदा उठा कर उनके साथ जिस्मानी रिश्ता बनाने वाले भेड़ियों का वास है। हिंदुस्तान की आजादी के ७३ साल बाद भी अगर हमें ऐसी खबर पढ़ने या सुनने मिले तो यह शर्मनाक बात है। हम आज ऐसे समाज में रह रहे है जहाँ बेटियों को मजदूरी करके पैसे कमाने के लिए भी पहले अपने जिस्म का सौदा करना पड़ रहा है।

गरीबी अभिशाप लगती है जब दो जून की रोटी कमाने के लिए हड्डियां गला देने वाली मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन गरीबी एक मजाक लगने लगती है जब रोटी के दो टुकड़े और चंद खनकते सिक्के फेंकने की वज में दरिंदे, देश की बेटियों के जिस्म का सौदा करते हैं । जहाँ गरीबों की नाबालिग बेटियां खदानों में काम करने के लिए मजबूर हैं, लेकिन ठेकेदार और बिचौलिये उन्हें काम की मजदूरी नहीं देते। मजदूरी पाने के लिए इन बेटियों को अपने जिस्म का सौदा करना पड़ता है ।

आपको जानकर हैरानी होगी की जिन बच्चियों के साथ यह पाप हो रहा है उन बच्चियों की उमर गुड्डे गुड़ियों से खेलने मात्र की है। स्कूल जाने की उम्र में गरीबी और बेबसी ने इन बच्चियों के बचपन में अंगारे भर दिए हैं। परिवार को पालने का जिम्मा इनके कंधों पर आ चुका है। 12-14 साल की बेटियां खदानों में काम करने जाती हैं, जहां दो सौ तीन सौ रुपये के लिए उनके जिस्म की बोली लगती है।

कर्वी की रहने वाली एक बच्ची जो इस खदान में काम करती है उसका कहना है कि “जाते हैं तो काम पता करते हैं तो फिर बोलते हैं कि अपना शरीर दो तभी काम पर लगाएंगे, फिर हम दे देते हैं अपना शरीर फिर काम पर लगते हैं तो पैसे भी नहीं मिलता, मना करते हैं तो बोलते हैं कि तुम को काम पर नहीं लगाएंगे, तो हम खाएंगे क्या फिर हम जाते हैं और दे देते हैं। ”

बड़ी दुःख की बात है कि आजादी के ७३ साल बाद भी हमें १२ साल की बच्ची के मुख से ऐसी दुष्कर्मीय घटना का वर्णन सुनने को मिलता है। हिंदुस्तान की कानून व्यवस्था और प्रशासन के आँखों पर लगी काली पट्टी कभी ये घिनौना सच देख पायेगी या नहीं यह कहना मुश्किल है, मगर चित्रकूट के पुलिस कर्मचारियों को इस बात की कोई भनक नहीं पड़ी यह चिंतन का विषय है।

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