भारत के सबसे बड़े रईस बिज़नेस मैन धीरूभाई अंबानी की पुण्यतिथि पर पढ़े उनके जीवन के बारे में विशेष रिपोर्ट।
कुछ लोग सिल्वर स्पून के साथ जन्म लेते हैं तो कुछ अपनी मेहनत से जीवन को आदर्श बना दते हैं और लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं। ऐसी ही शख्सियतों में एक नाम स्व. धीरूभाई अंबानी का भी आता है। आज (6 जुलाई) उनकी 18वीं पुण्यतिथि है। गुजरात के एक छोटे से गांव चोरवाड के स्कूल में शिक्षक हीराचंद गोवरधनदास अंबानी के तीसरे बेटे धीरूभाई अंबानी का जन्म 28 दिसंबर 1932 को हुआ। पांच भाई-बहनों में धीरूभाई तीसरे नंबर के थे। परिवार की पांच संतानों में रमणिकलाल, नटवर लाल, धीरूभाई और दो बहनें त्रिलोचना और जसुमती हैं।
आर्थिक तंगी के कारण धीरूभाई को हाईस्कूल के बाद ही पढ़ाई छोड़नी पड़ गई थी। उन्होंने बालपन में ही घर की आर्थिक मदद करनी शुरू कर दी थी। इस समय वे गिरनार (गुजरात का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल) के पास भजिए की दुकान लगाया करते थे, दुकान की आय यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या पर सीमित थी।
धीरूभाई की पहली जॉब की बात करें तो 1949 में 17 वर्ष की उम्र में काबोटा नामक शिप से वे यमन के एडेन शहर पहुंचे थे। यहां उनके बड़े भाई रमणिकलाल ने उनके लिए सारी व्यवस्थाएं कर रखी थीं, इसलिए उन्हें वहां कोई परेशानी नहीं हुई। लेकिन धीरूभाई के मन में कुछ और ही चल रहा था। इसलिए 1954 में वे वतन वापस आ गए। सन् 1955 में किस्मत आजमाने मुंबई पहुंच गए और यहीं से शुरू हुई उनकी व्यावसायिक यात्रा। यहां से धीरूभाई अंबानी ने ऐसे कदम बढ़ाए कि फिर कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। उनका नाम देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध हुआ।