पाकिस्तान के लिये महज़ ‘डिस्पोज़ेबल प्लेट’ की तरह था सैय्यद शाह गिलानी | पढ़ें पूरी ख़बर

पाकिस्तान के लिये महज़ ‘डिस्पोज़ेबल प्लेट’ की तरह था सैय्यद शाह गिलानी | पढ़ें पूरी ख़बर


पाकिस्तान के इशारे पर नाचने वाले अलगाववादी नेता गिलानी को पाकिस्तान ने ही उसकी असली औक़ात बता दी। दरअसल सैयद अली शाह गिलानी के ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस चेयरमैन पद से इस्तीफे के बाद से कयासों का रेला सा लग चुका है।

पाकिस्तानी हुज़ूरों के भौहों के इशारे पर घाटी में अलगाववाद की विचारधारा को फैलाने और मजबूत करने में गिलानी की प्रमुख भूमिका रही है। लेकिन सालों तक कश्मीरियत का झूठा राग अलाप कर कश्मीरियों को ठगने वाले गिलानी की अहमियत सूबे में शून्य से ज़्यादा कुछ नहीं। पाकिस्तान ने गिलानी को जिस तरह से दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका वो अलगाववाद के दूसरे झंडाबरदारों के लिए किसी हंटर से कम नही।

साफ है कि हुर्रियत के हुए फाड़ के चलते इस अलगाववादी नेता ने इस्तीफा दिया है। दरअसल बीते कुछ से ही हुर्रियत के धड़ों में गर्मागर्मी की स्थिति चल रही थी। इस्तीफे पर फिलहाल गिलानी के मुह से कोई बोल तो नही फ़ूटे लेकिन इस इस्तीफे ने सवालों की झड़ियां ज़रूर लगा दी है। सूत्रों के मुताबिक गिलानी, पाकिस्तान की नापाक़ साजिश का शिक़ार बन गया। पाकिस्तानी खूफिया एजेन्सी ऐसे अलगाववादी नेताओं का भारत के खिलाफ इस्तेमाल करना बखूबी जानती है और काम होते ही उन्हे कूड़े की तरह उठा कर फेंक दिया जाता है।

एक ऐसा भी समय था जब गिलानी, हुक़्मरानों के महज़ एक इशारे पर हिंसा के लिये हजारों की भीड़ बुला लेता था और आज वही गिलानी अकेले अपनी हालत पर सिर फोड़ रहा है। पीओके में गिलानी, हुर्रियत चैप्टर के लिए अब्दुला गिलानी को प्रतिनिधि बना अपने बेटे को हुर्रियत का उत्तराधिकारी बनाने की फिराक़ में जुटा था। लेकिन असली कहानी तो ये है कि गिलानी, हुर्रियत के अंदर चल रही प्रभुत्व की राजनीति के चलते परेशान था।

सबसे चौंकाने वाली बात तो ये कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बावजूद उसने ना कोई बयान दिया और ना ही कोई बन्द जैसा अभियान चलाया। जिसे लेकर हुर्रियत दल में फुसफुसाहट भी शुरु हो चुकी थी। पाकिस्तान परस्ती, वहां से हो रही फंडिंग साथ ही कश्मीर बन्द कराने को लेकर गिलानी हमेशा चर्चा में बना रहा। सूत्रों के मुताबिक गिलानी के हुर्रियत कॉन्फ्रेंस गुट में तक़रीबन 6 महीने से मनमुटाव चल रहा था। ऐसे में गिलानी को इस बात का पूर्वभास हो चुका था कि उसके वक़्त की बयार अब उल्टे पांव चलने लगी है। ऐसे में अपने बेटे नईम गिलानी को हुर्रियत का उत्तराधिकारी बनाने के लिये एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया था। वहीं बेटे नईम गिलानी के करीबी अब्दुल्ला गिलानी को पीओके चैप्टर का संयोजक नियुक्त करवा दिया।

गिलानी अपने दबदबे को बरकरार रखने के लिये किसी भी क़ीमत पर अपने बेटे को हुर्रियत चीफ बनाना चाह रहा था। लेकिन गिलानी की इस मंशा से पाकिस्तान की एजेंसियों के माथे पर शिक़न थी। ऐसे में गिलानी के पाकिस्तानी आक़ाओं ने सबसे पहले गिलानी को ही झटका दे दिया।पीओके के तख्त से उसके नुमाइंदे अब्दुल्ला गिलानी को हटा अपने पसंदीदा आदमी हुसैन मोहम्मद खतीब को वहां का तख्त सौंप दिया। ज़ाहिरतौर पर गिलानी जैसा अलगाववादी नेता भारत का कट्टर विरोधी रहा है। ये हमेशा कश्मीर को भारत देश से अलग करने की हिमायत करता रहा।

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