आखिरी सांस तक मुगल साम्राज्य के दांत खट्टे कर देने वाली वीरांगना रानी दुर्गावती | जानें उनका इतिहास

महान वीरांगना,कुशल रणनीतिज्ञा, अपने युद्धकौशल और पराक्रम से सीमित संसाधनों के साथ विशाल मुगल साम्राज्य के दांत खट्टे करने वाली वीरांगना रानी दुर्गावती ही है।
भारत भूमि पर वैसे तो एक से बढ़कर एक वीर योद्धाओं ने जन्म लिया है। लेकिन यहां की वीरांगनाओं की वीर गाथाएं भी किसी से कम नहीं हैं। ऐसी ही एक वीरांगना थी रानी दुर्गावती। जो जल जंगल और पहाड़ों की रानी कही जाती थी। वो गढ़ मंडला से लेकर महाकोशल पर राज करती थी। इसी बात से खिन्न मुगल राजा अकबर ने मध्यभारत में अपनी पैठ बनाने के लिए उसे चुनौती थी कि वो उसकी सल्तन को स्वीकार कर ले। इस पर रानी ने कहा चुनौती मंजूर है, पर गुलामी नहीं। जब रानी और मुगल सेना के बीच युद्ध हुआ तो रानी गंभीर रूप से घायल हो गईं उन्होंने अपनी अस्मिता के लिए खुद को कटार मार ली और मातृभूमि की खातिर शहीद हो गईं। वो तारीख 24 जून 1564 कही जाती है। रानी की समाधि पर हर बरस उनकी शहादत को नमन करने वालों का तांता लगता है। इसी कड़ी में हम बता रहे हैं रानी की वीरगाथा।
रानी दुर्गावती का साहसी इतिहास—
रानी दुर्गावती मरावी का जन्म प्रसिद्ध राजपूत चंदेल शासक कीरत राय के घराने में हुआ था. उनका जन्म चंदेल साम्राज्य में उत्तर प्रदेश के कालिंजर किले में हुआ था. इतिहास में महमूद ग़ज़नी को परास्त किये जाने की वजह से वह किला काफी प्रसिद्ध है. उनके प्यार को हम खजुराहो और कालिंजर के मंदिरों की मूर्तियों में देख सकते है. इतिहास में उनकी काफी शौर्य गाथाये प्रसिद्ध है.

1542 में रानी दुर्गावती का विवाह गोंड साम्राज्य के राजा संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपत शाह से से हुआ. उनके विवाह के उपलक्ष में चदेल और गोंड साम्राज्य के संबंधो में सुधार हुआ. परिणामतः कीरत राय ने कई बाद गोंड की सहायता भी की.

1545 में उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम वीर नारायण रखा गया. सन 1550 में उनके पति दलपत शाह की मृत्यु हो गयी और दुर्गावती ने गोंड साम्राज्य की बागडोर अपने हाथों में ली. साम्राज्य के दीवान और प्रधानमंत्री बोहर अधर सिम्हा और मंत्री मान ठाकुर ने रानी की काफी सहायता की. बाद में रानी अपनी राजधानी चौरागढ़ में सिंगौरगढ़ के महल में चली गयी. उनका यह महल सतपुरा पर्वत श्रेणियों में स्थित है.

शेर शाह की मृत्यु के बाद सुजात खान ने मालवा को हथिया लिया और 1556 में सुजात खान का बेटा बाज़ बहादुर वहा का उत्तराधिकारी बना. और सिंहासन पाने की चाहत में उसने रानी दुर्गावती पर हमला कर दिया लेकिन इस युद्ध में बाज़ बहादुर और उसकी सेना को काफी हानि हुई.

1562 में, अकबर ने मालवा के शासक बाज़ बहादुर को परास्त किया और मालवा को मुगलों ने अपने कब्जे में ले लिया. फलस्वरूप, रानी के साम्राज्य ने मुग़ल सल्तनत की सीमा को छू लिया था.

रानी दुर्गावती के समकालीन मुग़ल जनरल ख्वाजा अब्दुल मजीद असफ खान, जिन्होंने रेवा के शासक रामचंद्र को परास्त किया था.
रानी दुर्गावती के सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाज बहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ. तथा कथित मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था. उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधार सिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा. रानी ने यह मांग ठुकरा दी.

इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला कर दिया. एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला. रानी दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे. उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया. इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी.

अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला. इस बार रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया, तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका, दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी. तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया.

रानी दुर्गावती ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ. अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में मारकर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं. महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था.

जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम बरेला है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वही रानी की समाधि बनी है, जहां देशप्रेमी जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं. 1956 में, जबलपुर मे स्थित रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय भी इन्ही रानी के नाम पर बनी हुई है.

रानी दुर्गावती के पूर्वज छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के विभिन्न भागो में भी देखे गये है, जो अलग-अलग उपनामों से जाने जाते है- जैसे की, मादवी, मांडवी, मालवी इत्यादि.

सरकार ने उनकी मृत्यु के कुछ समय बाद उनके नाम का पोस्टल स्टैम्प भी जारी किया. और साथ ही जबलपुर जंक्शन और जम्मुवती के बिच चलने वाली ट्रेन को दुर्गावती एक्सप्रेस के नाम से जाना जाने लगा.
#RaniDurgaVati

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