फ़िल्म संगीत और भजन जागरण से जुड़े कलाकार भारत सरकार की नज़र में क्या इंसान नही हैं…? विष्णु मिश्रा मिश्रा
(गायक संगीतकार मुंबई)
कोरोना संकट के चलते कलाकारों की आजीविका भी अनलॉक होते हुए भी ‘लॉकडाउन’ में है। अब ढोल की थाप और करताल पर छेड़ी जाने वाली दर्द भरी आवाजें खामोश हो गई हैं। वो आवाजें, जिन्हें सुनकर कलेजा दरक उठता था। इन कलाकारों पर कोरोना महामारी की दोहरी गाज़ गिरी है। एक तो उनकी कला के कद्रदान छिन गए, दूसरे अपने ‘फन’ के दम पर पेट पालने वालों को दो वक्त की रोटी जुटा पाना कठिन हो गया।
लॉकडाउन ने जीवन से गीत-संगीत सब कुछ छीन लिया है। मानवीय संवेदनाओं के संवाहक की भूमिका अदा कर रहे कलाकारों की व्यथा काफी गहरी है, मगर कोई सुनने वाला नहीं है।
जो कलाकार अपना शहर छोड़कर मुंबई जैसे मायानगरी में आकर हर प्रकार की संगीत विधाओं में पारंगत होकर भी आज दर-दर मारे फिर रहे हैं, यह सभी कलाकार अगर संस्कृति मंत्रालय से नहीं जुड़े हैं तो इनकी पहचान क्या है? यह आज सबसे बड़ा प्रश्न इनके सामने हैं? क्या केवल संस्कृति मंत्रालय में रजिस्टर कलाकार ही लाखों कमाने की हकदार हैं? क्या उनको ही सारी विधाएं आती हैं? जो हजारों कलाकार संस्कृति मंत्रालय में अब तक रजिस्टर नहीं हो पाए हैं उनका दुख दर्द कौन समझेगा…? अगर अभी इन्हें कुछ आर्थिक मदद पहुंचा भी दी जाए तो आगे चलकर इन्हें काम कौन देगा?
बृहस्पतिवार को गीतकार संगीतकार एवं भजन गायक विष्णु मिश्रा ने सोशल मीडिया पर इनका दुख दर्द बयां करते हुए कहा कि ‘सरकार ऐसे कलाकारों के लिए कोई ना कोई ठोस कदम उठाए । उन्होंने कहा कि भोले-भाले कलाकार तो अपनी बात रख पाने में भी सक्षम नहीं हैं। इसलिए सरकार को इन का दुख दर्द समझना चाहिए और इनको भी संस्कृति मंत्रालय में एक रजिस्टर कलाकार की तरह ही कार्यक्रमों की सूची में सम्मिलित करना चाहिए। प्रदेश की सरकारें भी इस पर हस्त नियम बनाते हुए इन कलाकारों के लिए विशेष आरक्षण लागू करें, जिससे इनके मन में भी एक उत्साह जगह और हीन भावना का अंत हो। यह भी बड़े-बड़े कलाकारों सोनू निगम, अलका याग्निक, हिमेश रेशमिया से कमतर अपने आपको ना आंके।
उन्होंने कहा कि मैं केंद्र सरकार व राज्य सरकारों से मांग करता हूं इन कलाकारों की सुधि लें और इन्हें जल्द से जल्द अपने रजिस्टर्ड कलाकारों के समान सभी कार्यों के लिए जोड़ते हुए विभिन्न कार्यक्रमों में स्थान दे.. और जिस प्रकार रजिस्टर्ड कलाकार सरकारी आर्थिक मदत प्राप्त कर रहे हैं उसी प्रकार अन्य कलाकार भी वह लाभ ले पाएं और अपना और अपने बच्चों का पेट पाल सकें।
संगीतकार विष्णु मिश्रा ने यह भी कहा कि गीत-संगीत कला लोकरंजन का मात्र साधन नहीं बल्कि भक्तिभाव और अराधना रही है। ढोलक, तबला, हारमोनियम की अनुगूंज हर गांव-गली में सुनने को मिलती रही है। इस साज-बाज को बजाने वाले इन दिनों संकट में हैं। गरीबों, मजदूरों, किसानों के अलावा लॉकडाउन का सर्वाधिक प्रभाव कलाकारों पर पड़ा है। इनके सामने रोजी-रोटी की समस्या पैदा हो गई है। सरकार को इनकी मुश्किलों पर गौर करना चाहिए।इस कोरोना संकटकाल में मुझसे जितना बन पड़ रहा है मैं अपने साथी कलाकारों के साथ खड़ा हूं, उनकी हर संभव मदद कर रहा हूं। मेरे साथी कलाकार भी मदद कर रहे हैं लेकिन केवल उनके मदद से यह संभव नहीं है जब तक राज्य सरकारें और केंद्र सरकारें में मदत के लिए आगे नहीं आती हैं। जैसे अन्य असहाय लोगों के लिए सरकार आर्थिक मदद कर रही है वैसे ही इन कलाकारों की मदद के बारे में सरकारें सोचें।