वृंदावन में एक कथा प्रचलित है कि एक ठाकुर भूपेंद्र सिंह नामक व्यक्ति थे जिनकी भरतपुर के पास एक रियासत थी। इन्होंने अपना पूरा जीवन भोग विलास में बिताया।
धर्म के नाम पर ये कभी रामायण की कथा करवाते तो कभी भागवत की कथा करवाते थे, बस इसी को यह धर्म समझते थे।
झूठी शान और शौकत का दिखावा करने वाले ठाकुर भूपेंदर सिंह की पत्नी भगवान् पर काफी विश्वास रखती थी।
वह साल में नियमानुसार वृंदावन जा कर श्री बांके बिहारी की पूजा करती। जबकि भूपेंदर सिंह भगवान् में कभी आस्था विश्वास नहीं रखते थे।
उल्टा वह अपनी बीवी को इस बात का ताना भी मारते थे। लेकिन उनकी पत्नी कभी भी इस बात का बुरा नहीं मानी।
एक दिन भूपेंद्र सिंह शिकार से लौट कर अपने महल को फूलों से सजा हुआ पाते हैं।
घर में विशेष प्रसाद बनाया गया था लेकिन ये आते ही उखड़ गए और नौकरों पर चिल्लाने लगे।
तब उनकी बीवी ने बताया कि आज प्रकट दिवस है जिसके बारे में वे उन्हें पहले बता चुकी हैं।
लेकिन भूपेंद्र सिंह को याद ना होने के बाद कारण वह उन पर चिल्लाने लगे, जिसके बाद उन्हें लज्जा महसूस हुई और वह अपनी बीवी के सामने चुप हो गए।
धीरे धीरे ठाकुर भूपेंद्र सिंह की रुचि भोग विलास में बढ़ने लगी और वह अपनी पत्नी से दूर होते चले गए।
ऐसे में उनकी पत्नी कृष्ण जी के और करीब चली गईं और एक दिन उन्होंने ठान लिया कि वह अब से वृंदावन में ही रहेंगी।
ठाकुर साहब की पत्नी ने बांके बिहारी जी के लिए पोशाक तैयार करवाई थी जिस बारे में ठाकुर को पता चल गया था और वह उसे गायब करवाना चाहते थे।
उन्होंने पोशाक गायब करवा दी जिसके बारे में ठाकुर की पत्नी को पता ही नहीं चला और वह वृंदावन में उस पोशाक का इंतजार करने लगी।
ठाकुर ने यह खबर अपनी पत्नी को वृंदावन में जा कर देने की सोची।
जब वह वृंदावन पहुंचे तो देखते हैं कि वहां पर सभी भक्त बांके बिहारी लाल की जय !! जय जय श्री राधे !! करते हुए कृष्ण भीड़ लगाए हुए थे।
लेकिन ठाकुर के मन में अपनी पत्नी को नीचा दिखाने का विचार था।
वह जैसे ही अपनी पत्नी को ढूंढते हुए मंदिर पहुंचे, वह देखते हैं कि उनकी पत्नी उन्हें देख कर खुश हो रही होती है और कहती है कि भगवान् ने मेरी सुन ली कि तुम आज यहां आए हो।
वह ठाकुर साहब जी का हाथ थाम कर बांके बिहारी के सामने ले जाती है।
ठाकुर जी जैसे ही मूर्ति के सामने पहुंचते हैं। वह देखते हैं कि बांके बिहारी ने वही पोशाक पहन रखी थी जिसे उन्होंने चोरी करवाई थी।
इसे देख ठाकुर हैरान परेशान हो गया और जब उसने बांके बिहारी से आंखें मिलाई तब उसकी नजरें खुद शर्म से झुक गईं।
उनकी पत्नी ने बताया कि इस पोशाक बीती रात उनके बेटे ने लाई थी। यह सुन कर ठाकुर का दिमाग खराब हो गया और यह सोचते सोचते उसकी आंख लग गई।
बांके बिहारी सपने में आए थे और ठाकुर साहब से कहते हैं कि क्यों हैरान हो गए कि पोशाक मुझ तक कैसे पहुंची।
वे बोले कि इस दुनिया में जिसे मुझ तक आना है उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती।
पोशाक तो क्या तू खुद को देख, तू भी वृंदावन आ गया।
यह बात सुन ठाकुर साहब की नींद खुल जाती है और उनका दिमाग सुन्न पड़ जाता है।
जय श्री कृष्ण.
आप सभी लोगों के स्नेह प्रेम और गुरुजनों के आशीर्वाद का आकांछी-संगीतमय श्री राम कथा श्रीमद् भागवत कथा एवं श्रीमद् प्रेम रामायण महाकाव्य जी की कथा के सरस वक्ता—
दासानुदास—मणिराम दास जी महराज
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