पहले स्वयं जागृत होकर, आओ सारा विश्व जगाएं | रचयिता – शिव मिश्रा

कई महीनों से अवसाद ग्रस्त (Depression) होने के कारण सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या कर लेने से आज जहाँ पूरा देश शोक संतप्त है वहीं “अवसाद” पूरे विश्व के सामने एक बड़ा सवाल बन कर खड़ा है ।

आज के इस दौर में क्या किशोर, क्या युवा, क्या वृद्ध सभी किसी न किसी मन की आंतरिक पीड़ा के कारण अवसादग्रस्त हैं। यही मानसिक पीड़ा जब हद से ज़्यादा बढ़ जाती है तो व्यक्ति एकांत प्रिय हो जाता है साथ ही उसके व्यवहार में एक अलग सा बदलाव आ जाता है और यह बदलाव सिर्फ व्यवहार में नहीं बल्कि उसके शरीर और मन में भी बड़े गंभीर रूप से हो रहा होता है, जिसके फल स्वरूप व्यक्ति के दिमाग में कई रासायनिक उथल पुथल होती है यदि समय रहते व्यक्ति को उचित इलाज़ के साथ साथ उसे कोई अपना हमदर्द जिसके द्वारा बड़े अपनेपन और प्रेम से उसका विश्वास जीत कर उसके मन में लगी अवसाद ग्रन्थियों यानी मन में चल रही मानसिक उलझनों की गांठों को खोलने वाला न मिले तो व्यक्ति आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठा लेता है ।

अतः इस कविता के माध्यम से मैं आप सभी से यह संकल्प चाहता हूं कि आप अपने घर परिवार , अपने कार्य क्षेत्र और अपने आस पास के लोगों का हमेशा बड़ी संवेदनशीलता से ध्यान रखेंगे कि कहीं कोई किसी बड़ी मानसिक पीड़ा या अवसाद से तो नहीं गुज़र रहा। थोड़ी सी सजगता और आत्मीयतापूर्ण व्यवहार से आप कई लोगों की जान बचा सकते हैं।

अवसाद ग्रस्त को अवसाद से मुक्त कराने के लिए लोगों को प्रेरित करती कविता

आओ हम संकल्प उठायें …
आत्मज्ञान का दीप जलायें…
अंधियारे को मन से हटाकर,
मन में नव प्रभात ले आयें …

हर अवसाद ग्रस्त हृदयों को,
जीवन का सौंदर्य दिखाएं …
पहले स्वयं जागृत होकर,
आओ सारा विश्व जगाएं …

फिर न शांत सुशांत कोई हो,
व्याकुल मन न अशांत कोई हो..
भाई बहन मां बाप सुता सुत,
चिर परिचित अज्ञात कोई हो ..
बालक वृद्ध या कोई रोगी,
या कोई पिय विरह वियोगी …
ममतामय वात्सल्य भाव से,
सबको अपने गले लगाएं …
सहज भाव से पूछें उससे,
क्या पीड़ा है मन में उसके …
यदि वह तुमसे सब कह लेगा,
मन हल्का रो कर कर लेगा …
अंतर ह्रदय वेदना से फिर,
अंत न वो जीवन का करेगा …

मानव मात्र का धर्म यही है,
हम सब का कर्तव्य यही है …
कर अवसादमुक्त लोगों को
आत्मघात से उन्हें बचाएँ…

आओ हम संकल्प उठाएं …
आत्मज्ञान का दीप जलायें…
अंधियारा अंतर से मिटाकर,
मन में नव प्रभात ले आयें …

हर अवसाद ग्रस्त हृदयों को,
जीवन का सौंदर्य दिखाएं …
पहले स्वयं जागृत होकर,
आओ सारा विश्व जगाएं …


रचयिता –
शशिधर मिश्रा “शिव”

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3 Thoughts to “पहले स्वयं जागृत होकर, आओ सारा विश्व जगाएं | रचयिता – शिव मिश्रा”

  1. Manoj

    अति सुंदर रचना शिव भईया .. दिल को छू गई

  2. Shraddha Tiwari

    उम्दा….👌👌👌👌keep it up✍️

  3. Vivek tripathi

    Zabardast kavita shiv bhaj….awsome lines….

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