सृष्टि का कारण तुम्हीं हो | कवयित्री – प्रतिमा दीक्षित

सृष्टि का कारण तुम्हीं हो।
सृष्टि का विध्वंस हो तुम।।
सत्य हो, सुंदर हो, शिव हो।
शिष्ट और अपभ्रंश हो तुम।
ध्यानमग्न शमशान में सारी ही सीमा से परे तुम।
महायोगी हो त्रिलोकी और त्रिगुणातीत हो तुम।।
हे प्रभु! संसार हेतु चंद्रशेखर रूप धरिए।
मौन में संगीत रचिये।
शून्य में श्रृंगार गढ़िये ।।

जीव जग मत भोग समझो।
काल तुमको भींच लेगा।
जन्म बस जीवन नहीं है।
मृत्यु मुख भी खींच ‌लेगा।
कर्म हों शंकर सदृश,
होकर के निर्विकार करिये
त्रिकालदर्शी स्वयं हो कर
शिव में एकाकार करिये।
मौन का संगीत सुनिए।
शून्य से श्रृंगार करिये।

ध्वनि का उद्भव शान्ति से है।
सरल से अलंकार उद्धृत।।
व्याप्त था निर्वात केवल।
है सकल ब्रम्हांड व्यवहृत।।
आदि से अनंत तक शिव रूप में
सर्वस्व गढ़िये।
मौन का संगीत सुनिए।
शून्य से श्रृंगार करिये।।

सकल दर्शित व्याप्त भ्रम है।
उसकी शाश्वतता वहम् है।
देखिए मत दृश्य माया।
दृष्टि सीमा पार करिये।।
तृतीय लोचन की सुलोचन
जागृति इस बार करिये।
मौन का संगीत सुनिए।
शून्य से श्रृंगार करिये।।

कवयित्री – प्रतिमा दीक्षित

 

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