समय-समय की बात है यारों, समय-समय का खेल,
घूमन के जो उस्ताद हैं यारों, घर में पड़े हैं ढ़ेर
लूडो, कैरम, सांप-सीढ़ी का दिन भर खेलें खेल,
सोने में तो उस्ताद हो गए, बाकी काम में फेल
खाते-खाते फूल गए सब, भूल गए सब काम
पूरे दिन बस टीवी मोबाइल, पूरे दिन आराम
घर में बस बीबी से चिकचिक, बच्चों का कोहराम
कार बाइक सब धूल खा रहे, पैर भी हो गए जाम
कोई बन गया कुकिंग स्टार, कोई बन गया हज्जाम
हाथ पर धरे हाथ हैं बैठे, और दिन भर धोते हाथ
ताक-झाँक के जो शौकीन हैं दादा, खाकर लौटे लात
कोरोना तूने क्या हाल कर दिया, बीच भँवर में जान
वापस जाओ अपने घर चाइना, भइया हमारे छोड़ दो प्राण।
कवि :
डॉ. विशाल