विषमता का दौर है
वक्त फिर भी मौन है,
अचम्भित करने सबको
आया एक शोर है
खामोशी से आया है
जीवन में सबके छाया है,
रूह को झिंझोड़ कर
छिपा एक चितचोर है
तिल-तिल कर मरता है
कर्म करे कोई भरता है,
हर किसी की आंखों में
चुभता जैसे एक शूल है
पाप करे फिर रोता है
जागे ना कोई सोता है,
टूटा मन संसार से
रोया एक-एक पोर है
रक्त तन से बहता जाए
पीड़ा जितनी सहता जाए,
घटता हर पल जीवन का
चलता फिर भी हर छोर है।
कवयित्री – सुविधा अग्रवाल “सुवि”