हिन्दी साहित्य के दोहा शिरोमणि हैं कवि- गीतकार राजेश कुमार |

राजेश कुमार श्रीवास्तव हिन्दी साहित्य के बड़े कवियों में शुमार एक चर्चित नाम है। अब तक दोहा-शैली में
राजेश कुमार की क्रमशः चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं!

1 -आँच पर सवाल, 2- बिटिया तुलसी दूब है 3-कान्हा प्रिया 4-राम राज्य की ओर

“हमने अपने भाग्य की तुम्हें थमा दी डोर।”
“योगी जी अब ले चलो राम राज्य की ओर।।”

गोरक्षपीठाधीश्वर औरभाजपा के अपराजेय पूर्वांचल गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ को 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए जाने के भाजपा आला कमान के फैसले और योगी जी द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद को सुशोभित करने के ठीक तीन माह के अंदर राम राज्य की ओर पुस्तक कवि राजेश कुमार ने जन मानस को सौंप दी थी जिसकी खासी सराहना हुई थी! हिन्दी साहित्य में आप दोहा शिरोमणि के रूप में जाने जाते हैं! कवि राजेश कुमार मूलतः प्रयाग राज निवासी हैं और विगत 20 वर्षों से मुम्बई में सपरिवार रह रहे हैं! हिन्दी सिनेमा में भी आपके कई गीतों कोबाॅलीबुड के नामचीन गायक और गायिकाओं ने अपनी आवाज़ दी है।

अभी हाल ही में पुस्तक बिटिया तुलसी दूब है के कुछ दोहों को पार्श्व गायक गायिका कुमार विशू और मेनका मिश्रा ने अपनी शानदार आवाज में गाया है उस एलबम की शूटिंग उत्तराखंड में हुई है जबकि कवि गीतकार दोहाशिरोमणि राजेश कुमार की माँ जगदम्बा माँ सरस्वती पर लिखी ओजस्वी वन्दना को हिन्दी सिनेमा के मशहूर गायक अमन तिर्खा ने अपनी शानदार आवाज़ में शिव ताण्डव की तर्ज़ में गाया है। भारतीय क्रिकेट टीम के आतिशी स्टार बल्लेबाज रह चुके बिहार से भाजपा के पूर्व सांसद कीर्ति आज़ाद द्वारा निर्मित फिल्म किरकिट के गानों को भी राजेशकुमार ने ही लिखा है!

आप एक बड़ेgovernment contractor के रूप में राष्ट्रीय राज्य मार्गों के निर्माण का काम करते हैं। विगत एक वर्ष से आप उत्तराखंड में राष्ट्रीय राज्य मार्गों के निर्माण में व्यस्त हैं! आइये पढ़ते हैं राजेश कुमार की लिखी तीन अत्यंत प्रभावशाली प्रयोगवादी कविताएँ!

एक
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कुंद धार से भी मारेगा
वो ऐसा हथियार रहा है

राम वही है वही खुदा है
सर्व धर्म इक सार रहा है

देश बांट कर लूटो खाओ
उनका यह व्यापार रहा है

चोर खानदानी जो जो हो
कुर्सी का हकदार रहा है

जाति धर्म का मर्ज लगा है
लोकतंत्र बीमार रहा है

अद्भुत लोकतंत्र भारत का
देश को ही दुत्कार रहा है

देखो उनकी दाल गल रही
देश का जो गद्दार रहा है

जो रिमोट से ही चलता था
ऐसा इक सरदार रहा है

चोर यूनियन बना के लड़ना
चोरों को अधिकार रहा है

जनता ने जिसको कुचला था
वही नाग फुफकार रहा है

नही जाति आतंकी की पर
इक मजहब से तार रहा है

बंदर लाया एक बंदरिया
उल्टी पलटी मार रहा है

बाप जेल में बेल पे बेटा
फिर भी दांत चियार रहा है

चौकीदार चोर जो कहता
चोरों का परिवार रहा है

लंदन वाले घर का जीजा
जेल से छोटा द्वार रहा है


दो
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गीत गड़े हैं अंतस मन मे
तितली है दीवारों पर
सुलग रहा है दिल का कोना
प्रीत पड़ी अंगारों पर

चाबी खोई संबंधों की
जंग लगी है तालों में

प्रश्न वाण की शैया पर थे
कटे शीश में द्रोण के भी
कभी राधिका पूछ रही थी
अर्जुन के थे प्रश्न कभी

बलदाऊ थे सदा निरुत्तर
कान्हा सदा सवालों में

हाल पूछती शबरी अब तक
राम राज्य की सीता का
युग बीते पर पता नही है
मर्म अभी भी गीता का

सिंघासन पर पड़ी खड़ाऊंँ
उलझी गड़बड़झालों में

उत्तर अगर विभीषण देगा
शीश कटेगा भाई का
कटे अंगूठे एकलव्यों के
मानक है गुरुवाई का

दुनिया क्यूँ बदलेगी आखिर
आने वाले सालों में


तीन

जिसको बहुत अहम होगा
उसको उतना गम होगा

डर आंधी का तिनकों को
अक्सर पेड़ से कम होगा

दिल से उसके निकलोगे
जब नफरत में दम होगा

भर पायेगा बाँहों में
मैं से जब वो हम होगा

ज्ञानी वो ही होता है
दुःख सुख में जो सम होगा

खोलें मन की खिड़की को
देखें कैसे तम होगा

रोता जमजम का पानी
मोनिन अगर सितम होगा

हज कैसे हो पायेगा
गर दिल में कुछ ख़म होगा

मुरझाते पत्ते का गम
किसको पता सनम होगा


संजय पुरुषार्थी
समीक्षक

( समीक्षक संजय पुरुषार्थी एक सुप्रसिद्घ उद्घोषक साहित्यकार और पर्यावरण संरक्षण सचेतक हैं! )

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