श्री कबीरदास जी का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था, इसीलिए इस दिन देश भर में कबीर जयंती मनाई जाती है। श्री कबीरदास जी महाराज भक्तिकाल के एकमात्र ऐसे संत और कवि थे जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज सुधार के कार्यो में लगा दिया।
श्री कबीर दास जी ने जिस भाषा में लिखा, वह लोक प्रचलित तथा सरल भाषा थी।
उनके दोहे इंसान को जीवन जीने की नई प्रेरणा देते थे। उन्होंने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उन्होंने विधिवत शिक्षा नहीं ग्रहण की थी। इसके बावजूद वे दिव्य प्रभाव के धनी थे।कबीरदास जी मध्यकालीन भारत के स्वाधीनचेता महापुरुष थे। तत्कालीन समाज में फैले आडम्बरों के वह सख्त विरोधी थे।
प्रचलित जन धारणाओं के अनुसार कबीरदास जी का जन्म ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि विक्रमी संवत १४५५ तदनुसार सन १३९८ ई. को लहरतारा ताल, काशी, वर्तमान स्थित उत्तरप्रदेश में हुआ था। कबीरदास जी के जन्म के विषय में बहुत सी धारणाये प्रचलित हैं। कुछ लोगों के अनुसार जगद्गुरु श्री स्वामी रामानंदाचार्य जी महाराज श्री ने कबीरदास की मां को भूल से पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था।
मां ने कबीरदास जी को जन्म के पश्चात तुरंत लहरतारा ताल के पास फेंक दिया था। वहीं कुछ कहते हैं कि कबीर जन्म से मुसलमान थे लेकिन बाद में उन्हें जगदगुरु रामानंदाचार्य जी से हिन्दू धर्म का ज्ञान प्राप्त हुआ। और श्री रामानंदाचार्य जी महाराज जी से उन्होंने श्री राम मंत्र की दिच्छा ली।
कबीर के माता पिता के विषय में जनधारणा है नीमा और नीरु विवाह कर बनारस जा रहे थे। तब वह दोनों विश्राम के लिए लहरतारा ताल के पास रुके। उसी समय नीमा को कबीर कमल के पुष्प में लपटे हुए मिले थे। कबीर का जन्म श्री कृष्ण के समान माना जा सकता है, जिस प्रकार कृष्ण की जन्म देने वाली मां अलग और पालने वाली अलग थी। उसी प्रकार कबीरदास को जन्म देने वाली और पालने वाली मां अलग अलग थी।
कबीर निरक्षर थे। उन्हें शास्त्रों का ज्ञान अपने गुरु स्वामी श्री रामानंदाचार्य जी द्वारा प्राप्त हुआ था। कबीर को अपने गुरु से शिक्षा लेने के लिए भी बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा. तत्कालीन समय के रामानंदाचार्य स्वामी जी द्वारा सामाजिक कुरुतियों को लेकर विरोध किया जा रहा था। इस बात का पता जब कबीर को चला तो वे उनसे मिलने पहुंच गए। उनके दरवाजे पर पहुंच कर कबीरदास जी ने उनसे मिलने का आग्रह किया तो उन्हें पता चला कि स्वामी जी मुसलमानों से नहीं मिलते। लेकिन कबीर ने हार नहीं मानी।
स्वामी जी प्रतिदिन प्रात: काल पंचगंगा घाट पर स्नान के लिए जाया करते थे।कबीरदास जी स्वामी जी से मिलने के उद्देश्य से घाट के रास्ते पर जाकर सो गए। ब्रह्म मुहूर्त में जब स्वामी जी स्नान के लिए वहां से निकले तो उनकी खड़ाऊ कबीरदास को लग गई। स्वामी जी ने राम राम कहकर कबीर दास जी से पुछा की आप कौन हैं ? श्री कबीरदास जी ने कहा कि गुरूदेव मै आपका ही शिष्य हूं। स्वामी जी ने आश्चर्य से पुछा कि मैंने आपको अपना शिष्य कब बनाया।तब श्री कबीरदास जी ने कहा कि—
“अभी जब आपने राम राम कहते हुए गुरुमंत्र दिया, तभी से मै आपका शिष्य बन गया।
श्री कबीरदास जी के ऐसे वचन सुनकर स्वामी जी बड़े प्रसन्न हो गए ।और उन्होंने कबीर को अपना शिष्य बना लिया।
श्री कबीर दास जी का विवाह, वनखेड़ी बैरागी की पालिता कन्या लोई के साथ हुआ। उनसे कबीर को दो संताने थीं । श्री कबीरदास जी के पुत्र कमाल कबीर दास जी के मत को पसंद नहीं करते थे । इसका उल्लेख संत कबीरदास दास जी की रचनाओं में मिलता है।
श्री कबीरदास जी द्वारा अपनी रचित काव्यों को कभी भी लिखा नहीं गया, सिर्फ बोला गया है। उनके रचित काव्यों को बाद में उनके शिष्यों द्वारा लिखा गया। श्री कबीरदास जी को बचपन से ही साधु संगति बहुत प्रिय थी। जिसका जिक्र उनकी रचनाओं में मिलता है। उनकी रचनाओं में मुख्यत: अवधी एवं साधुक्कड़ी भाषा का समावेश मिलता है। संत कबीरदास रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनकी साखियों में गुरु का ज्ञान, समस्त समाज एवं भक्ति का वर्णन देखने को मिलता है।
कबीर संपूर्ण जीवन काशी में रहने के बाद अंत समय मगहर चले गए। उनके अंतिम समय को लेकर भी मतांतर रहा है, लेकिन कहा जाता है कि सन १५१८ ई. मे मगहर में उन्होनें अपनी अंतिम सांस ली |
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आपका अपना ही–
संगीतमय श्री राम कथा श्रीमद् भागवत कथा एवं श्रीमद् प्रेम रामायण महाकाव्य जी की कथा के सरस गायक– दासानुदास–
मणिराम दास
संस्थापक/अध्यक्ष- श्री सिद्धि सदन परमार्थ सेवा संस्थान एवं ज्योतिष परामर्श केंद्र श्री धाम अयोध्या जी।
शाखा— श्री हनुमत शिव शक्ति धाम बदरा गोरखपुर उत्तर प्रदेश
संपर्क सूत्र-७३९४६१४८१२/९६१६५४४४२८