दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (PIL-Public Interest Litigation) दायर की गई है। याचिका में सूचना के अधिकार (RTI- Right to Information) अधिनियम के दायरे में पीएम केयर्स फंड लाने का अनुरोध अदालत से किया गया है।
डॉ. एस.एस. हुड्डा द्वारा ये याचिका, प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा आरटीआई क्वेरी (RTI Query) के जवाब के बाद दायर की गई है जिसमें पीएमओ ने कहा है कि पीएम केयर्स फंड आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 2(H) के तहत उत्तरदायी नहीं है क्योंकि यह “सार्वजनिक प्राधिकरण” नहीं है। ।
एडवोकेट आदित्य हुड्डा के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि चूंकि फंड सरकार द्वारा “नियंत्रित” और “पर्याप्त रूप से वित्तपोषित” है, इसलिए यह आरटीआई अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण के रूप में आने योग्य है। इसमें पीयूसीएल बनाम भारत संघ (2004) में सर्वोच्च न्यायालय से पूर्वता का हवाला दिया गया है।
“नियंत्रित” क्वालिफायर पर, याचिका में कहा गया है: “प्रधानमंत्री पीएम केयर्स फंड का पदेन अध्यक्ष होता है, जबकि रक्षा, गृह मंत्रालय और वित्त मंत्री इसके पदेन ट्रस्टी होते हैं। फंड के अध्यक्ष और ट्रस्टी आगे तीन अतिरिक्त ट्रस्टी को नियुक्त करने की शक्ति रखते हैं। ट्रस्ट के धन को खर्च करने के नियम/ मानदंड प्रधानमंत्री और उपरोक्त तीन मंत्रियों द्वारा तैयार किए जाएंगे।
वित्त पोषण पर यह कहा गया कि- “सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों से बड़े पैमाने पर दान द्वारा 10,000 करोड़ रुपये का कोष बनाया गया है और यहां तक कि सशस्त्र बलों के कर्मियों, सिविल सेवकों और न्यायिक संस्थाओं के सदस्यों के वेतन को अनिवार्य रूप से दान में दिया गया है।”
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यह भी तर्क दिया गया है कि प्रकृति और PM CARES FUND के पैमाने को देखते हुए कोरोना वायरस पीड़ितों को “जानने का अधिकार” है कि PM Cares Fund से कितना रुपया एकत्र किया गया है और क्या योजना बनाई गई है।