मई महीना चला गया आ पहुँचा है जून
गर्मी ऐसी पड़ रही खौल रहा है खून ।।
मेहनतकश को देखिए कितना करता काम
तब जा कर पाता कहीं रोटी दाल व नून ।।
रोटी आज न खा सके तो पछताएंगे आप
एक साल में एक बार ही आता है दो जून ।।
खाके रोटी दो जून की मिलता गजबै आराम
टनाटंन जब पेट हो तो क्यों खिसके पतलून।।
मई महीना क्या गया चला गया आराम
बिजली भी मैके गई ‘औ’ मचछर चूसें खून ।।
कवि
●।।संजय पुरुषार्थी ।।●