विकास के मोर्चे पर डगमगाई मोदी सरकार, बढ़ा राजकोषीय घाटा

कोरोना महामारी भारत के लिये आर्थिक मोर्चे पर भारी पड़ रही है। फाइनेंशियल ईयर 2019- 20 के आए आर्थिक आंकड़ों ने सरकार की मुसीबतें और चुनौतियां दोनो बढ़ा दी हैं। दरअसल मौजूदा साल की जीडीपी विकास दर पिछ्ले 11 साल की तुलना में निम्नतम स्‍तर पर है। वहीं पर राजकोषीय घाटे के आंकड़ों की बात करें तो ये भी पिछले 7 वर्ष में सबसे ज़्यादा घाटा रिकॉर्ड हुआ है।

साल 2019 से साल 2020 के दौरान देश के राजकोषीय घाटे का ग्राफ जीडीपी का 4.6 फीसदी रहा। ये स्थिति तब है जब सरकार ने 3.8 फीसदी घाटे का अन्देशा जताया था। और परिणाम उससे भी ज़्यादा चिन्ताजनक हैं। वहीं इससे पहले फाइनेंशियल ईयर 2018- 19 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.4 फीसदी रहा। लेकिन सरकार ने इस घाटे के पीछे किसानों के हित के लिये लाए गये आय सहायता कार्यक्रम यानि किसान सम्मान निधि को वजह बताया था। गौरतलब है कि साल 2012 से साल 2013 में राजकोषीय घाटा 4.9 फीसदी था।

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दरअसल सरकार ने पिछले साल 1 फरवरी को 2019- 20 का अंतरिम बजट पेश किया था। बजट पेश करने के दौरान किसानों को नकद सहायता के लिये ‘किसान सम्मान निधि’ के अन्तर्गत 20 हज़ार करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। आंकड़ों के मुताबिक राजस्व घाटे का ग्राफ बढा जो कि 2019-20 में जीडीपी का 3.27 फीसदी रहा जो कि सरकार के 2.4 फीसदी के अनुमान से कहीं ज़्यादा है। हालांकि राजकोषीय घाटे की भरपाई के लिये सरकार इस घाटे को पूरा करने के लिए सरकार कई तरह के उपाय अपनाती है। लिहाजा पेट्रोल डीजल पर अतिरिक्‍त टैक्‍स लगाकर इस घाटे को लघु करने का प्रयास करती है। लेकिन सरकार की इन कोशिशों का सीधा असर आम जनता की जेब पर पड़ता है।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक राजकोषीय घाटे के पीछे वजह रेवेन्यू का कम होना है। रेवेन्यू का सबसे बडा श्रोत टैक्स कलेक्शन होता है। लेकिन टैक्स कलेक्शन के आंकड़े निराश करने वाले हैं। आंकड़ों के हिसाब से टैक्‍स कलेक्‍शन कम होने के चलते सरकार का कर्ज बढा है।

आंकड़ों के मुताबिक सरकार का कुल खर्च 26.86 लाख करोड़ रुपये रहा जो कि पहले के अनुमान 26.98 लाख करोड़ रुपये से काफ़ी कम है।वहीं बीते फाइनेंशियल ईयर में खाद्य सब्सिडी 1,08,688.35 करोड़ रुपये थी। हालांकि ये सरकार के अनुमान के हिसाब पर है। वहीं पेट्रोलियम समेत कुल सब्सिडी घटकर 2,23,212.87 करोड़ रुपये रही जो कि सरकार के अनुमान में 2,27,255.06 करोड़ रुपये थी।

ज़ाहिर है कि राजकोषीय घाटा बढने का परिणाम कर्ज होता है। घाटे से उबरने के लिये सरकार को मजबूरी में कर्ज लेना पड़ता है। और इसकी भरपाई ब्याज के साथ करना होता है।

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