आज जो मामला हम आपको बताने जा रहे हैं वो एक असलम नाम के बलात्कारी मौलवी को हिन्दू पुजारी बताने वाले मीडिया हाउस का है । साल २०१९ में बिलासपुर में एक महिला अपने पति के दूर जाने व पारिवारिक समस्याओं के चलते परेशान थी। उसे कहीं से एक मुस्लिम आलिम असलम फैजी के बारे में सूचना मिली। लोगो का मानना था की वो मुस्लिम आलिम असलम फ़ैज़ी तंत्र मंत्र की शक्ति से लोगो की परेशानियाँ दूर कर देता था ।
वह महिला उसके पास मदद के लिए पहुँच गई। मुस्लिम आलिम असलम फ़ैज़ी ने महिला की समस्या को दूर करने के बहाने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाया। और ऐसा करने के बाद मुस्लिम आलिम असलम फ़ैज़ी ने उस महिला को आश्वासन दिया कि अब उसकी समस्या हल हो जाएगी।
कुछ दिन बाद जब महिला के पास न उसका पति लौटा और न ही उसकी परेशानियाँ समाप्त हुईं, तो उसे एहसास हुआ कि मुस्लिम आलिम असलम फ़ैज़ी ने उसकी मजबूरी का फायदा उठाकर उसके साथ दुष्कर्म किया है। इसके बाद महिला ने फौरन पुलिस में जाकर मुस्लिम आलिम असलम फ़ैज़ी की शिकायत की। पुलिस ने आरोपित के ख़िलाफ़ धारा 376 के तहत मामला दर्ज कर लिया।
पुलिस ने पुरे मामले की जाँच पड़ताल की और उन्हें ये पता चला कि आरोपी मूलत: मनेंद्रगढ़-चिरमिरी का निवासी है । इसका मुख्य आरोपी मुस्लिम आलिम असलम फ़ैज़ी उर्फ़ फैजी उर्फ सुहैल रजा एक मस्जिद का मौलवी है। इस केस का हिन्दू पुजारी या हिन्दू समाज से कोई लेना देना नहीं है। मौलवी पेंड्रा में किराए पर रहता था और यहाँ पर लोगों को जादू-टोने से ठीक करने का दावा करता था।
जाँच में ये भी पता चला कि असलम के पास न केवल आसपास से लोग आते थे, बल्कि दूसरे जिले के लोग भी उसके पास अपनी समस्या लेकर आते थे। ऐसे मे जब 34 वर्षीय महिला को इसकी सूचना मिली, तो वो भी असलम के पास पहुँची। जहाँ असलम ने पहले महिला की परेशानी को सुना और फिर उसे झाड़-फूँक के नाम पर कमरे में ले गया और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।
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नयी दुनिया अख़बार ने किया हिन्दू समाज को बदनाम
अब चूँकि पूरा मामला समुदाय विशेष के अपराध से संबंधित था, तो जरूरी है कि खबर को कवर करते समय दोनों बातों का ख्याल रखा जाए। मगर, नई दुनिया समेत कई मीडिया पोर्ट्ल्स ने इस खबर को प्रकाशित किया और हेडलाइन में मुस्लिम आलिम की जगह ‘तांत्रिक’ शब्द का प्रयोग किया। साथ ही जादू-टोना करने वाले मौलवी की जगह एक पुजारी का स्केच लगा दिया।
अब ऐसा नहीं है कि शब्दकोष में जादू-टोना करने वालों के लिए कोई अन्य शब्द नहीं है या फिर इंटरनेट पर जादू-टोना करते मौलवियों की प्रतीकात्मक तस्वीर नहीं है। लेकिन, फिर भी पाठकों को बरगलाने के लिए किया गया इस तरह का प्रयास दर्शाता है कि अब मीडिया की हर विधा में इस बात को सामान्य मान लिया गया है कि मुस्लिमों के अपराध को छिपाने के लिए हिंदुओं की संस्कृति, सभ्यता से जुड़े चिह्नों व शब्दों को प्रयोग में लाना आवश्यक है।
बता दें, पिछले साल का ये वाकया मीडिया के इतिहास में घटिया प्रयास की पहली-दूसरी घटना नहीं है। इससे पहले और इसके बाद कई बार कई मीडिया संस्थानों ने हिंदू भावनाओं की कद्र किए बिना मुस्लिम आलिम के लिए ‘तांत्रिक’ शब्द का इस्तेमाल किया और जादू-टोना करने वालों को मंत्रों की झाड़-फूँक करने वाला बताकर दर्शाया। साथ ही मुस्लिमों द्वारा किए गए अपराध को ‘हिन्दू स्पिन’ दे दिया ।
भाषा के जरिये विशेष समुदाय के अपराधों पर मीडिया परदे डालने की कोशिश करता रहता है । ऐसे कई मामले साबित हो चुके है जहाँ आरोपी विशेष समुदाय से ताल्लुक़ रखता है पर मीडिया ने आरोप हिन्दू पर लगाए हैं।
बीते वक़्त में ऐसा ही एक मामला पश्चिम बंगाल के नदिया जिले से आया था। जहाँ एक मुस्लिम आलिम ने काले जादू का उपयोग करके 10 साल के बच्चे की इलाज करने की कोशिश की पर अंततः बच्चे की मौत हो गई । मीडिया गिरोह ने इस अपराध को भी हिन्दुओं के मत्थे मढ़ दिया । शक के बिनाह पर ही हिन्दुओं की जमकर आलोचना की गयी।
बंगाल में हुए 10 साल के बच्चे की मौत की खबर में भी मीडिया गिरोह ने इस अपराध को हिन्दू द्वारा किए गए अपराध के रूप में फैलाया था।
मीडिया गिरोह हमेशा से ही शब्दों का हेर फेर करके बात का बतंगड़ बनाने में माहिर है। मीडिया हाउस मौलवी की जगह तांत्रिक शब्द का उपयोग इसलिए करते है क्यूंकि तांत्रिक शब्द से मतलब तंत्र विद्या अभ्यास करने से जुड़ा है। ये मुख्य रूप से हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ है। मगर, मीडिया द्वारा की गई ऐसी रिपोर्ट्स से ये संदेश जाता है कि अपराध हिन्दू व्यक्ति द्वारा किया गया था, जबकि ये अपराध मुस्लिम आलिम द्वारा किए गए होते हैं।