मै अगर नींद बनूँ तो तुम मेरा ख्वाब बनो,
तुम दूर हो तो दूर सही पर मेरे साथ चलो,
मोहब्बत को एक तरफ़ा रहने दो तुम मुझपर विश्वास करो,
पतझर मै बन जाता हूँ तुम बसंत की बहार बनो |
धुप में बिखरने लगूँ तो घनघोर बादल बन छाँव करो,
सूखने लगे मन मेरा तो उम्मीदों की बरसात करो,
दीदार की हो ख्वाहिश तो तुम फलक का चाँद बनो,
धरती मैं बन जाता हूँ तुम मेरा आसमान बनो |
मैं अँधेरा बनूँ तो तुम पूनम की रात सजाये रखो,
मैं सूर्य गतिमान बनूँ तो तुम ग्रहण लगाए रखो,
मुझे स्वीकार हैं तुम्हारी सब बातें अब तुम भी मुझे स्वीकार करो,
अल्फ़ाज़ मैं बन जाता हूँ तुम मेरी आवाज़ बनो |
मैं लहर बनूँ तो तुम शील समंदर बनो,
मैं कश्ती बनूँ तो तुम मेरा किनारा बनो,
हर वक़्त मैं तुममें तुम मुझमें समाये रहो,
अंश मैं बन जाता हूँ तुम चाहे सारा ब्रहमांड बनो |
कवि : अभिनयकुमार सिंह