भक्तमाल ग्रंथ में श्री एकनाथ महाराज की एक कथा बहुत ही सुंदर अद्भुत अद्वितीय प्रसिद्ध है—–
एकनाथ जी का प्रतिदिन पवित्र गोदावरी नदी में स्नान करने का नियम था। एक यवन उनकी बढ़ती प्रतिष्ठा से बहुत द्वेष रखता था। एक दिन की बात है, उस यवन ने गोदावरी में स्नान करने आए एकनाथ जी पर थूक दिया। वह विचार कर रहा था कि अब ये क्रोधित हो जाएँगे, और तब मैं इनकी खिल्ली उड़ाऊँगा।
पर एकनाथ जी स्वयं पर थूके जाने से तनिक भी विचलित न हुए, और दोबारा नहा आए। उनकी शान्ति से चिढ़े यवन ने रोज थूकने का नियम बना लिया। अब तो वह रोज गोदावरी के किनारे पर खड़ा होकर, एकनाथ जी की प्रतीक्षा करता और जब वे नहा कर आते तो उन पर थूकता। एकनाथ जी भी रोज की तरह चुपचाप दोबारा नहा आते।
एक दिन तो जब उन्हें वहाँ यवन न मिला तो “उसका नियम भंग न हो” ऐसा सोच कर एकनाथ वहीं ठहरे रहे, जब वह बहुत देर तक न आया तब आगे बढ़े।
एक दिन यवन ने उन्मत्त होकर, उन पर 108 बार थूका। हजारों लोग जुट गए। यवन थूकते थूकते थक गया। पर एकनाथ हर बार नहाते रहे, विचलित न हुए। अंत में यवन को अपने किए पर पश्चाताप हुआ और एकनाथ जी के चरणों में गिर गया।
कृष्ण जी कहते है कि यद्यपि पत्थर में बहुत बल है, फूल बहुत कोमल है। हजार फूल एक पत्थर पर मारें तो भी पत्थर का कुछ नहीं बिगड़ता। एक पत्थर फूल पर लगे तो फूल बिखर जाए।
ऐसे ही जहर में बहुत बल है, दूध बहुत निर्बल लगता है। एक प्याली जहर में कितना ही दूध मिलाओ, वह दूध भी जहर ही हो जाता है, और दूध में एक बूंद जहर मिल जाए तो दूध जहर हो जाता है।
पर दूसरी ओर हमें यह भी विचार करना चाहिए कि अमृत की एक बूंद असीम जहर को अमृत बना देने में सक्षम है। प्रकाश की किरण जहाँ पड़ती है, अंधकार दूर हो जाता है। सन की मुलायम रस्सी पत्थर पर निशान डाल देती है। पानी की टपकती कोमल बूंदें, पहाड़ को भी काट देती हैं।
योंही शान्ति, धैर्य, सहनशीलता और श्रद्धा से, अनन्य भाव से, सदगुरु के आश्रय से, कोटि कोटि जन के हृदय परिवर्तित किए जा सकते हैं और अपने कोटि जन्मों के संस्कार नष्ट हो जाते हैं।
भविष्य का भय सदैव केवल उनके लिए सताता है जो वर्तमान में भी संतुष्ट नहीं। जिस व्यक्ति को वर्तमान में संतुष्ट रहना आ गया फिर ऐसा कोई दूसरा कारण ही नहीं कि उसे भविष्य की चिंता करनी पड़े।
आप सभी लोगों के स्नेह प्रेम और गुरुजनों के आशीर्वाद का आकांछी-
संगीतमय श्री राम कथा श्रीमद् भागवत कथा एवं श्रीमद् प्रेम रामायण महाकाव्य जी की कथा के सरस गायक-
पूर्वांचल की माटी के लाल मां सरस्वती के वरद पुत्र युवा हृदय सम्राट आशु कवि भागवत मधुकर
दासानुदास- मणिराम दास
संस्थापक- श्री सिद्धि सदन परमार्थ सेवा संस्थान एवं ज्योतिष परामर्श केंद्र
अध्यछ- वंदे मातरम् मंच
श्री धाम अयोध्या जी
संपर्क सूत्र-६३९४६१४८१२/९६१६५४४४२८