नेपाल और भारत के बीच तनातनी दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। सीमा और आधिकारिक क्षेत्र को लेकर ये विवाद और भी गहराता जा रहा है। पहले नेपाल ने भारत के क्षेत्रों को अपने आधिकारिक नक्शे में दर्शाया और इस विवाद को और भी तूल देने की कोशिश की जा रही है। दरअसल भारतीय सीमा से लगी एक सड़क पर तकरीबन 12 साल बाद एक बार फिर से कंसट्रकशन का काम शुरू करा दिया है।
उत्तराखंड के धारचूला इलाक़े से गुजरती है
आपको बता दें कि ये सड़क उत्तराखंड के धारचूला इलाक़े से होकर गुजरती है। इतना ही नही, करीब 130 किमी लंबी धारचूला- टिनकर सड़क का लगभग 50 किमी हिस्सा उत्तराखंड से जुड़ा हुआ है। सूत्रों की माने तो इस प्रोजेक्ट की इजाज़त साल 2008 में दी गई थी। इसका उददेश्य टिनकर पास की मदद से नेपाल और चीन के बीच व्यापार को बढ़ावा देना था। गौरतलब है कि जब भारत ने धारचूला- लिपुलेख सड़क शुरु की तो तो नेपाल में भारत के इस क़दम का भारी विरोध हुआ।
भारत ने करारा जवाब दिया
नेपाल सरकार का कहना था कि वो दर्रा तो नेपाल के सीमा अधिकार क्षेत्र में आता है। तब भारत ने इसका करारा जवाब भी दिया। भारत ने उसी वक़्त ये साफ कर दिया था कि रोड पूरी तरह से भारतीय सीमा क्षेत्र में है और अगर नेपाल को ऐतराज जताना ही था तो उसे मार्ग निर्माण के पहले जताना चाहिये था। आपको बता दें कि 43 किमी के पुराने निर्माण के बाद नेपाल आर्मी बाकी बचे 87 किमी रोड को पूरा करने के लिए घटियाबघार में बेस कैंप तैयार रही है।
लेकिन इतने लम्बे वक़्त के बाद नेपाल को इस रोड की याद आने के पीछे मकसद क्या है?
दरअसल नेपाल को अब इस रोड को याद करने की पीछे की वजह भारत का धारचूला से लिपुलेख दर्रे को जोड़ने वाली 80 किलोमीटर लंबी रोड का उद्घाटन करना है। आपको बता दें कि 8 मई को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने तवाघाट-लिपुलेख रोड का उद्घाटन किया था। इस मार्ग के आने से कैलाश मानसरोवर जाने के लिए पहले से काफ़ी कम वक्त लगेगा। जिस रास्ते का नेपाल ने पुनः निर्माण शुरु किया है इस पर ना सिर्फ टेरेन बेहद खतरनाक है बल्कि मौसम की स्थिति भी निश्चित नही होती। मौसम के चलते लगातार नुकसान होने की वजह से कॉन्ट्रैक्टर ने भी काम आधे में ही छोड़ दिया था। नेपाल सरकार के मुताबिक इस रूट के बन जाने के बाद ना सिर्फ व्यापार बढ़ेगा, बल्कि तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की भी संख्या बढ़ेगी।
नेपाल के गलत नक्शे पर भड़का भारत
लिपुलेख विवाद के बाद नेपाल ने अपना नया नक्शा जारी कर भारत के 395 वर्ग किमी क्षेत्र को अपना दिखाया था। लिपियाधुरा, लिपुलेख, कालापानी, गुंजी, नाभी, कुटी के साथ कई गांवों को नेपाल का हिस्सा बताया है। भारत ने नेपाल की इस घटिया हरकत पर कड़ा संदेश देते हुए कहा कि देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता में किसी भी तरह की दखल अन्दाज़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। विदेश मंत्रालय के मुताबिक सीमा विवाद का बातचीत के जरिये समाधान निकालने का प्रयास करना होगा।