नेपाल ने आधिकारिक तौर पर अपने देश के एक नए राजनीतिक मानचित्र को जारी किया है। हैरान करने वाली बात ये है कि नेपाल ने भारत में मौजूद उत्तराखंड के कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख क्षेत्र को नेपाली संप्रभु क्षेत्र के हिस्से के रूप में दिखाया है। जिसके बाद से भारत और नेपाल को कटाक्ष बयानों की युद्ध भूमि पर खड़ा कर दिया है।
एक संवाददाता सम्मेलन में मानचित्र का शुभारंभ करते हुए, भूमि प्रबंधन मंत्री पद्मा कुमारी आर्यल ने कहा कि प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार देश की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
पद्मा कुमारी ने कहा कि “यह नेपाल के लोगों के लिए खुशी का एक ऐतिहासिक क्षण है। सरकार हमारे लोगों के आत्मसम्मान का क्षरण नहीं होने देगी। नेपाल नया नक्शा प्रकाशित करेगा और इसे स्कूल की पाठ्यपुस्तकों का हिस्सा बनाएगा।”
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के पास सुस्ता का क्षेत्र भी, नए नक्शे में नेपाल के हिस्से में दिखाया गया है। काठमांडू का दावा है कि भारत ने इस क्षेत्र पर अतिक्रमण किया है।
सड़क विवाद
भारत द्वारा लिपुलेख दर्रे तक सड़क बनाने की घोषणा के बाद ही आनन फानन में नेपाल ने नए नक्शे को जारी किया है। गौरतलब हो कि भारत की इस सड़क योजना से तिब्बत के मानसरोवर तीर्थस्थल की यात्रा के समय में कटौती होगी। नेपाल ने गुस्से में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि ये क्षेत्र काठमांडू का है। नेपाल प्रधानमंत्री ओली ने कहा है कि उनकी सरकार इस क्षेत्र में आत्मसमर्पण किए बगैर, भारत को पट्टे पर तिब्बत के लिए एक सड़क देने को तैयार थी।
भूमि प्रबंधन मंत्री पद्मा कुमारी ने बुधवार को कहा कि नेपाल अपने क्षेत्रीय दावों पर में भारत के कूटनीतिक बातचीत शुरू करने के लिए तैयार है।
जबकि सच्चाई ये है कि भारतीय कार्रवाई के बाद, नेपाल के कुछ हिस्सों में भारत विरोधी प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं जिसकी वजह से ही ओली सरकार ने कथित क्षेत्रीय वर्चस्व के लिए भारत को निशाना बनाया है।
मंगलवार को ओली ने संसद में कहा “भारत के अशोक स्तंभ में शेर है जिसके नीचे “सत्यमेव जयन्ते” लिखा है, जिसका वास्तव में मतलब है कि “शेर [प्रबल] हो सकता है, लेकिन नेपाल निश्चित करता है कि सच्चाई प्रबल होगी।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत हिमालयी देश में कोरोना वायरस के फैलने का जिम्मेदार है।
नक्शे पर विवाद
तनाव भरे इस मौजूदा दौर का अंदाजा पिछले साल भारत द्वारा एक नए राजनीतिक मानचित्र की घोषणा से लगाया जा सकता है, जिसमें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के नए बनाए गए केंद्र शासित प्रदेशों को दिखाया है। जिसमें कालापानी के क्षेत्र को भी भारतीय क्षेत्र के हिस्से के रूप में दिखाया गया है।
नेपाल का कहना है कि सिर्फ कालापानी क्षेत्र ही नहीं, बल्कि लिम्पियाधुरा और लिपुलेख भी इसके संप्रभु क्षेत्र के हिस्से हैं क्योंकि 1816 में सुगौली की संधि में सीमांकन तय किया गया था। जो यह कहता है कि लिपुलेख को उसके राजाओं द्वारा देश के नक्शे से हटा दिया गया था ताकि बदले में भारत से एहसान लिया जा सके।
काठमांडू के जानकारों का कहना, है कि वास्तव में नया नक्शा एक दस्तावेज है जो 1950 के दशक तक देश में प्रचलन में था। उनका दावा है कि कालापानी का क्षेत्र भारत को 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद राजा महेंद्र द्वारा दिया गया था।
नेपाल ने इससे पहले, भारत और चीन के बीच 2015 में लिपुलेख दर्रे का इस्तेमाल बिना नेपाल के किसी परामर्श के, व्यापार के लिए इस्तेमाल करने पर भी नाराजगी जताई थी।
प्रधानमंत्री ओली ने इस हफ्ते संसद में ये दावा किया कि हालांकि चीन ने काठमांडू को अवगत कराया था कि भारत के साथ समझौता व्यापार और तीर्थयात्रा के बारे में था लेकिन भारतीय क्षेत्र को चीनी मुहर लगाकर मंजूर नहीं किया है।
संसद के समक्ष दिए गए भाषण में, राष्ट्रपति बिध्या देवी भंडारी ने नए नक्शे की घोषणा की थी। मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में इस निर्णय को मंजूरी दी गई और बुधवार को इसका अनावरण किया गया।
(नेपाल में भारतीय दूतावास के पास, 12 मई, 2020 को नेपाल के सुदूर नेपाल में भारत द्वारा नेपाल सीमा के कथित अतिक्रमण के विरोध में ‘ह्यूमन राइट्स एंड पीस सोसाइटी नेपाल’ से जुड़े कार्यकर्ता धरना प्रदर्शन करते हुए) फोटो साभार: राउटर