“मैं सनातन हूँ…”
मेरा ठोस रूप हिम-कण हैं,
मेरा तरल-रूप है पानी !
मेरा वाष्प-रूप बादल हैं !
शाश्वत है मेरी कहानी !
मैं सनातन हूँ ।
मैं बीज हूं, मैं ही फल हूं,
मैं पर्ण, पुष्प, तरुवर हूं ।
सृष्टी ने जिसे नित गाया,
अनहद रूपी वह स्वर हूं ।
संघर्ष, विजय पथ मेरा,
अविरल है मेरी रवानी ।
हर जीत हुई नतमस्तक,
जब हार न मैंने मानी ।
मैं सनातन हूं ।
जिसे शस्त्र छेद ना पाए,
जिसे अग्नि जला ना पाए ।
जिसे वायु सुखा सके ना,
जिसे जल भी गला ना पाए ।
अनुवाद पंच-तत्वों का,
भौतिक तन क्षुद्र निशानी ।
सौ में से घटें सौ तब भी,
सौ बचें, बात यह जानी ।
मैं सनातन हूं ।
मैं सनातन हूं ।
- शेखर “अस्तित्व”