ठेस लगे है मन में मेरे,
जब तुम परदा करते हो,
अकारण ही तुम मुझसे,
हर भेद छिपाया करते हो
टूटता हूं सब जानकर फिर,
क्यों अपना मुझको कहते हो,
बात कोई भी हो जीवन में,
निराश क्यों तुम यूं रहते हो
अभिप्राय कुछ हो शब्दों का,
तुम कुछ समझा करते हो
कुछ अच्छा होगा हंसने को,
ये बात क्यों भूला करते हो
अद्भुत जीवन के सफर में,
नित्य नव सीखा करते हो
फिर भी तुम क्यों चित्त को,
चिंतित रह भेदा करते हो..।।
कवयित्री – सुविधा अग्रवाल “सुवि”