लगे ये पीठ में खंजर, किसी तो मित्र ने मारे ।
बहुत कम लोग वरना हैं ,कि जो हों शत्रु से हारे ।
अगर हो वार सम्मुख से,उसे है झेलना संभव—-
मगर यदि घात छुपके हो,प्रभो भी क्या उसे टारे ।
किसी ने लग रहा जैसे ,अडिग विश्वास को मारा ।
लगे है दुष्ट पतझर ने ,किसी मधुमास को मारा ।
बुलाया लग रहा सागर,तृषित को आज धोखे से—–
लगे ज्यों आज पनघट ने,बुलाकर प्यास को मारा ।
कवयित्री :
अनुराधा पाण्डेय,
द्वारिका,नई दिल्ली।