मलाल तेरे मन का मलाल ही रहने दे,
तू तेरे सवाल को सवाल ही रहने दे,
आइना बिकता नहीं अन्धो के शहर में,
तू हिन्दू के हाथो में गुलाल ही रहने दे ।
बवाल जाती का बवाल ही रहने दे,
तू तेरे सवाल को सवाल ही रहने दे,
शोर गूंजता नहीं बहरो के शहर में,
तू रमजान के बकरे को हलाल ही रहने दे ।
दुनिया को अंधे बहरे का मिसाल ही रहने दे,
तू तेरे सवाल को सवाल ही रहने दे,
फर्क पता नहीं जिन्हे उजाले और प्रकाश का,
तू उस दुनिया में अन्दर का मिशाल ही रहने दे ।
कवी : अभिनयकुमार सिंह