हनुमान जी का अतुलित बल | संत श्री मणिरामदास महाराज

सर्व प्रथम आप सभी लोगों को ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष के मंगलवार की खूब ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई।

प्रसंग – अनंत बलवंत श्री हनुमंत लाल जी महाराज जी की कनिष्ठिका अंगुली मात्र में कितना बल है—-
तो फिर चलते हैं—–

आप सभी लोगों को ये तो मालूम ही है कि देवताओं के राजा जो देवराज इन्द्र है उनकी सवारी क्या है।
मुझे मालूम है कि आप को मालूम है— फिर भी मै बता रहा हूं! थोड़ा मन को एकाग्र चित्त करके सुनिएगा।
क्यूंकि जानते हैं हमें जब कोई अमूल्य धरोहर रखने के लिए देता है तो साथ में हमें सावधान भी कर देता है।। कि थोड़ा सम्हाल कर रखिए गा । जानते हैं क्या कारण है। बस यही की वो सामान बहुत ही अमूल्य है।
ठीक सज्जनों मै भी इसी प्रकार आपसे निवेदन कर रहा हूं कि आप सभी लोग भी अपने मन को शांति चित्त करके इस प्रसंग को ध्यान से पढे, लाइक करें कमेंट करे और साथ साथ सेयर भी करें।
आईए उसी प्रसंग में आपको लेकर चलता हूं—-
प्रसंग चल रहा था कि देवराज इन्द्र की सवारी कोन सी है–
तो सज्जनों देवराज इन्द्र जिससे सवारी करते हैं अपनी यात्रा करते हैं उसका नाम है——-एरावत हाथी।
यहां एक संसय मन में उठता है कि– देवराज इन्द्र आखिर में एरावत हाथी से ही क्यों चलते हैं।
कारण है इसमें–
कोन सा कारण?
तो लीजिए सुन लीजिए। इस संसार में में जितनी प्रकार की हाथियों की प्रजाति होती है उनमें सबसे अत्यधिक शक्तिशाली हाथी एरावत हाथी होता है।
एक एरावत हाथी में दस (१०) हजार हाथी का बल होता है।
और दस (१०) हजार एरावत हाथी में जीतना बल होता है।
उतना देवराज इंद्र में अकेले होता है।
कहने का मतलब देवराज इन्द्र के अंदर १० हजार एरावत हाथी जितना बल होता है।
और दस (१०) हजार देवराज इंद्र में जीतना बल होता है।
उतना बल तो —हमारे अनंत बलवंत श्री हनुमंत लाल जी महाराज जी के कनिष्ठिका अंगुली मात्र में होता है।
बोलिए अनंत बलवंत श्री हनुमंत लाल जी महाराज जी की——–
जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो।
सज्जनों!
एक बार की बात है—मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राघवेन्द्र सरकार जब रावण का उद्धार करके पुष्पक विमान में आरूढ़ होकर अपने सभी परिकरो के साथ १४ वर्ष की वनवास यात्रा पूर्ण करके जब श्री धाम अयोध्या जी के लिए जा रहे थे तो उस समय पुष्पक विमान में अनंत बलवंत श्री हनुमंत लाल जी भी साथ में ही थे।
रास्ते में श्री हनुमंत लाल जी महाराज जी का घर भी था। जहां पर मा अंजनी अपने ठाकुर जी की सेवा में हमेशा लीन रहती थी। तभी अचानक हनुमान जी महराज को याद आया कि इससे अच्छा समय दुबारा हमें नही लगता है कि फिर मुझे सहज में प्राप्त होगा।
अस्तु!
श्री हनुमंत लाल जी महाराज जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राघवेन्द्र सरकार जी के श्री चरणों में बैठकर बड़े ही श्रद्धा भक्ति उमंग उत्साह के साथ एक निवेदन करने के प्रभु से अनुमति मांगी।
श्री हनुमान जी महराज जी ने प्रभु से दोनों हाथों को जोड़कर निवेदन किया कि प्रभु! यदि आपकी आज्ञा हो तो मै एक छोटा सा निवेदन आपके श्री चरणों में करना चाहता हूं।
ये शब्द सुनते ही मेरे राघवेन्द्र सरकार जी के आंखो से आंसुओ की अश्रुधार बह चली।
प्रभु जी ने कहा हनुमान! आप क्या कहना चाहते हैं आप जल्दी बोलिए। मुझे खुशी होगी कि आज मेरे प्यारे हनुमान हमसे कुछ निवेदन कर रहे हैं।।
तब अनंत बलवंत श्री हनुमंत लाल जी ने अपने दोनों कर कमलों को जोड़कर निवेदन किए।
प्रभु यहां से बस थोड़ी सी दूर पर दास की कुटिया है। जहां पर मेरी मैया अंजनी मैया निवास करती हैं। यदि आपके श्री चरण दास की कुटिया पर पड़ जाते तो मेरी माता जी को भी आप श्री के दर्शन हो जाते। और मै भी बहुत दिनों से माता जी का दर्शन नही किया हूं। आप की कृपा से मुझे भी दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हो जाता।!
ये बात सुनते ही मेरे प्रभू जी ने तुरंत सहर्ष अनुमति दे दी।
सज्जनों!
ज्यो ही मैया अंजनी ने पुष्पक विमान पर प्रभु जी को आरूढ़ देखा तो बहुत ही खुश हुई।
लेकिन अनंत बलवंत श्री हनुमंत लाल जी को देखते ही मईया एकदम आग बबूला हो गई। श्री हनुमान जी महराज जब मा के श्री चरणों में प्रणाम करने के लिए तो मैया ने गुस्से में कहा कि—-
हनुमान मै तुम्हारा मुंह नही देखना चाहती। मेरी आंखो के सामने से हट जाओ। आज से तुम मुझे मां मत कहना। ये सब लीला देखकर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राघवेन्द्र सरकार जी भी आश्चर्य में पड़ गए कि आखिर में ये सब क्या हो रहा है।
हनुमान जी महराज आंखो में अश्रु लिए मैया से निवेदन करते हैं कि मां मेरी मां आप मुझे बताइए कि मुझसे क्या गलती हो गई है जो आप मुझसे इतनी अधिक नाराज हैं। आप मेरा मुंह भी नही देखना चाहती है। मा मुझे बताइए!
तब मैया ने गुस्से में कहा–
हनुमान! मुझे तुझ पर बहुत ही ज्यादा गर्व था कि मेरे बेटे जैसा बलशाली इस संसार में कोई नहीं है।
लेकिन हनुमान तूने मेरे सभी गर्व पर पानी फेर कर रख दिया।
मुझे बहुत ही ज्यादा दुःख है कि मेरे हनुमान के रहते प्रभु को इतना कष्ट उठाना पड़ा। क्या तुम रावण को नही मार सकते थे? क्या तुम सीता जी को नही ला सकते थे?
तुम्हारे रहते हुए मेरे राम जी को इतना कष्ट उठाना पड़ा।
तुमने मेरे दूध की लाज नही रखी।
मां के मुंह से ये शब्द सुनकर श्री हनुमान जी महराज जी ने कहा!
मैया आप जो कह रही हैं वो सभी बाते सच है। मै रावण को मारकर मा सीता जी को वापस ले आता। प्रभु को जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
लेकिन! मा आप जानती हो–
प्रभु ने मुझे केवल माता सीता जी का पता लगाने के लिए भेजा था।
यदि प्रभु की आज्ञा होती तो मै सब राछसो को मारने के बाद रावण को भी मारकर सीता माता जी को साथ में ले आता।
लेकिन मा मै मजबुर था।
इसलिए मैने उतना ही ही किया जितनी प्रभु जी की आज्ञा थी।
ये शब्द सुनते ही मईया अंजनी के आंखो से आंसुओ की धार बह चली और मैया ने अपने लाला को गले से लगा लिया।
बोलिए अनंत बलवंत श्री हनुमंत लाल जी महाराज जी की जय हो
शेष अगले सत्र में—
आज बस इतना ही—-
शेष अगले मंगलवार को—–
आपका स्नेह प्रेम और गुरुजनों का आशीर्वाद सदा सर्वदा हमें ऐसे ही मिलता रहे —-
आपका अपना ही—संगीतमय श्री राम कथा श्रीमद् भागवत श्री भक्त माल कथा एवं श्रीमद् प्रेम रामायण महाकाव्य कथा के सरस गायक– दासानुदास – मणिराम दास
संस्थापक/अध्यक्ष- श्री सिद्धि सदन परमार्थ सेवा संस्थान एवं ज्योतिष परामर्श केंद्र श्री धाम अयोध्या जी
संपर्क सूत्र-६३९४६१४८१२/९६१६५४४४२८

Share Now

Related posts

Leave a Comment