चंद्रमा की चंचल किरणें,
मुझे हर सांझ रिझाती हैं;
मानो सूरज के ढ़लते ही,
ये खुद पे इतराती हैं;
अंतर्मन के एक कोने में,
मधुर मुस्कान सजाती है;
भटके हुए मनु हृदय का,
पथ प्रदर्श ये कराती है;
शून्यता की इस घड़ी में,
इक नई आस जगाती है;
अल्प है तो क्या कम है,
यही संदेश भिजवाती है;
चंद्रमा की चंचल किरणें,
अथाह चांदनी बिखराती है।