कुछ आशाएं कुछ उम्मीदे वो भी सजा रही है,
जो तेरे जन्म का पीड़ा मुस्काते हुए उठा रही है,
ऐ आँखें तू कोई ख्वाब मत देखना कभी,
माँ तेरे आँखों में अपने सपने उतार रही है ।
जीना तू जीवन वैसा ही जैसा वो आस लगा रही है,
माँ तुझे अपनी रियासत का राजकुमार बना रही है,
आँखें मूंदे ही चलना तू उन रहो पर,
अपने सपनो की लाठी पकड़ा कर तुझे अँधा बना रही है।
वो ही पालन पोषण का तेरे जिम्मा उठा रही है,
तुझ बेगाने से ममता का पावन रिश्ता बना रही है,
तेरे दिल से कह देना कोई बेगाना ख्वाब ना पाले,
नौ महीने कोख में रखा जिसने वो तुझसे आस लगा रही है ।
आँख खुलने के पहले से ही वो उम्मीद जगा रही है,
खुशी में वो मोहल्ले भर को तेरा फ़र्ज़ बता रही है,
नम आँखों से ही सही पर उसकी आस पूरी करना तू,
दूध पिलाया भी तो उसने ही है जो लाचार बना रही है ।
लेखक : अभिनयकुमार सिंह